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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनमःसिद्धम् ॥ अथ श्रीमद्देवचन्द्रकृतगुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिकाबालावबोधः॥ आर्यावृत्तम्. वीरस्स पए पणमिअ, सिरिगोयमपमुहगणहराणं च। गुरुगुणछत्तीसीओ, छत्तीसं कित्तइस्सामि ॥१॥ टबार्थकारनु मङ्गल-अभिधेयादिप्रणम्य परमात्मानं, शुद्धस्याद्वाददेशकम् । श्रीवीरं शासनाधीश, विश्वेशं प्रणमाम्यहम् ॥१॥ श्रीमदाचार्यवर्याणां, गुणानां षट्त्रिंशिका । टबार्थः शिष्यबोधाय, देवचंद्रेण प्रोच्यते ॥२॥ श्रीवीर चोवीसमा परमेश्वर त्रिशलानंदन मोहमलनीपवाने महावीर अभये परीसहोवसगाणं तेण कए महावीरे, एहवा श्रीमहावीर स्वामी तेहना 'पएः चरणारविंद प्रणमी---नमम्कार करीन तेहना प्रथम गणधर श्रीगौतम जेहना दीक्षित पचास २०००० हजार मुनि मोक्षानंदने पाम्या ते प्रमुख अग्निभूति आदिक जे गणधर ते सर्वने प्रणाम करीने आत्माने परमानंदतत्त्व निप्पत्तिनो मूळ शुद्ध श्रद्धान छे, ते शुद्ध श्रद्धान देवतत्त्व, गुरुतत्त्व, धर्मतत्त्व, एहनी शुद्ध भोळवाण प्रतीत करे थाय, तिहां देव जे श्रीअरिहंत सिद्धस्वरूपभोगी म्वगुणपर्याय प्रागभाव करव निर्मलीकृत स्वसत्तावंत स्वरूपकर्ता, स्वरूपभोक्ता, जेहन अवलंबी अनंता For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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