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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २० www.kobatirth.org आगमसार. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चार वर्गणा सूक्ष्म छे एमां पांचवर्ण - बे गन्ध, पांचरस - चार स्पर्शए सोल गुण छे, अने एक परमाणुमा एक वर्ण - एक गंधएक रस-बे स्पर्श ए पांच गुण छे. एम पुद्गल खंधना अनेक भेद छे. ए व्यवहार नयना छ भेद छे. १ शुद्ध व्यवहार ते आगला गुणठाणानुं छोडं अने उपरना गुणठाणानुं ग्रहण कर अथवा ज्ञान - दर्शन - चारित्र गुण ते निश्वयनय एकरूप छे. पण ते शिष्यने समजाववाने जूदा जूदा भेद कहेवा ते शुद्ध व्यवहार छे. २ जीवमां अज्ञान राग द्वेष लाग्या छे ते अशुद्धपणं छे माटे अशुद्ध व्यवहार. ३ जे पुण्यनी क्रिया करवी ते शुभ व्यवहार ४ जेथकी जीव पापरूप अशुभ कर्म करे ते ५ अशुभ व्यवहार. धन - घर - कुटुंब प्रत्यक्ष सर्व आपणाथी जुदा जुदा छे पण जीवें अज्ञानपणे आपणा करी जाण्या छे ते उपचरित व्यवहार. ६ शरीरादिक परवस्तु यद्यपि जीवथी जुदी छे तोपण परिणामिकभाव लोलीपणे एकठा मिली रह्या छे तेने जीव आपणा करी जाणे छे ते अनुपचरित व्यवहार जाणवो. ए व्यवहार नय को. • हवे ऋजु सूत्र नयनो विचार कहे छे. जे अतीत काल अने अनगत कालनी अपेक्षा न करे पण वर्त्तमान काले जे वस्तु जेवा गुण परिणामे वर्त्ते ते वस्तुने तेवेज परिणामे माने माटे ए नय परिणामग्राही छे. जेम कोइक जीव गृहस्थ छे पण अंतरंग साधुसमान परिणाम छे तो ते जीवने साधु कहे अने कोइक जीव साबुने वेषे छे पण मनना परिणाम विषयाभिलाष सहित छे तो ते जीव अवतीज छे एम ऋज़ सूत्रं मानवुं छे. ते ऋजु सूत्रना बे भेद छे एक सूक्ष्म ऋजु सूत्र ते For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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