SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. .........my छ एम कहेवू ते अन्वय द्रव्यार्थिक ७ सर्व जीव द्रव्यनी मूल सत्ता एक छे ते परमद्रव्यार्थिक नय ८ सर्व जीवना आठ प्रदेश निर्मल छे ते शुद्ध द्रव्यार्थिक नय ९ सर्व जीवना असंख्यात प्रदेश एक सरीखा छे ते सत्ता द्रव्यार्थिक नय, १० गुणगुणी द्रव्य ते एक छे ते परमभावग्राहक द्रव्यार्थिक. जेम आत्मा ज्ञानरूप छे. इत्यादिक ए द्रव्यार्थिक नयना दश भेद कह्या. हवे पर्यायार्थिक नयना छ भेद कहे छे जे पर्यायने रहे ते पर्यायार्थिक नय कहिये, तेना छ भेद छे १ द्रव्य पर्याय ते जीवने भव्यपणुं तथा सिद्धपणुं कहेवं, २ द्रव्य व्यंजन पर्याय ते द्रव्यनुं प्रदेशमान, ३ गुण पर्याय जे एक गुणथी अनेकता थाय जेम धर्माधर्मादिद्रव्य पोताना चलण सहकारादि गुणथी अनेक जीव तथा पुद्गलने सहाय करे, ४ गुण व्यंजन पर्याय जे एक गुणना घणा भेद छे ५ स्वभाव पर्याय ते अगुरुलघु पर्यायथी जाणवो. ए पांच पर्याय सर्व द्रव्यमां छे अने छठ्ठो विभाव पर्याय ते जीव पुद्गल ए बे द्रव्यमांछे तिहां जीव जे चार गतिना नवा नवा भव करे ते जीवमां विभाव पर्याय तथा पुद्गलमा खंधपणुं ते विभाव पर्याय जाणवो. हवे पर्यायना बीजा छ भेद कहे छे १ अनादि नित्य पर्याय ते जेम पुद्गल द्रव्यनो मेरु प्रमुख, २ सादि नित्य पर्याय ते जीव द्रव्य, सिद्धपणं, ३ अनित्य पर्याय ते समय समयमां द्रव्य उपजे विणशे छे, ४ अशुद्ध अनित्य पर्याय ते जन्म मरण थाय छे तेणे करी कहेवू, ५ उपाधि पर्याय ते कर्म संबंध, ६ शुद्ध पर्याय जे मूल पर्याय सर्व द्रव्यना एक सरीखा छे ए पर्यायार्थिक स्वरूप कह्यु, For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy