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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आगमसार. ९ ते तो मोक्षे जता नथी, तेहने उत्तर जे अभव्यने कर्म चीकणां छे अने अभव्यमां परावर्त्त धर्म नथी तेथी सिद्ध थता नथी माटे तेनो एहवोज स्वभावछे जे मोक्षे जपुंज नयी अने भव्यजीवां परावर्त्त धर्म छे भाटे कारण सामग्री मिले पलटण पामे गुणश्रेणि चढी मोझें करी सिद्ध थाय पण जीवना मुख्य आठ रुचक प्रदेश जे छे ते निश्चयनयथी भव्य तथा अभव्य सर्वना सिद्ध समान छे माटे सर्व जीवनी सत्ता एक सरीखी छे केमके ए आठ प्रदेशने बिलकुल कर्म लागतां नथी ते " श्री आचारांग सूत्रनी श्री सिलांगाचार्य कृत टीकाना लोकविजयाध्ययने प्रथमोद्देश साख छे तिहांयी सविस्तरपणे जोवुं.” पक्ष कहेछे. ए छ द्रव्य ते स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल, अने स्वभावपणे सत् एटले छता छे अने परद्रव्य, परक्षेत्र, परकाल तथा परभावपणे असत एटले अछता छे तेनी रीत बताववाने अर्थे छए द्रव्यना द्रव्य क्षेत्र काल भाव कहिये छैंये. तथा धर्मास्तिकायनो मूलगुण चलण सहायपणो ते स्वद्रव्य, अधर्मास्तिकायनो मूलगुण स्थिति सहायपणो ते स्वद्रव्य, आकाशास्तिकायनो मूल गुण अवगाहपणो ते स्वद्रव्य, कालद्रव्यनो मूल गुण वर्त्तनालक्षण पणो ते स्वद्रव्य, तथा पुद्गलनो मूलगुण पुरणगलनपणो ते स्वद्रव्य अने जीवद्रव्यनो मूलगुण ज्ञानादिक चेतनालक्षणपणो ते स्वद्रव्य ए छद्रव्यनोस्वद्रव्यपणो को. हवे स्वक्षेत्र ते द्रव्यनो प्रदेशपणो छे ते देखाडे छे. तिहां एकधर्मास्तिकाय, बीजो अधर्मास्तिकाय. ए बे द्रव्यनो स्वक्षेत्र असंख्यात प्रदेश छे अने आकाशद्रव्यनो स्वक्षेत्र अनंत प्रदेश छे. कालद्रव्यनो स्वक्षेत्र समय छे. पुद्गलद्रव्यनो स्वक्षेत्र एक पर 2 For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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