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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra की www.kobatirth.org आगमसार. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तिकाय ए बे द्रव्य असंख्यात प्रदेशी छे अने एक आकाशद्रव्य अनंतप्रदेशीछे. जीव द्रव्य असंख्यात प्रदेशीछे, पुद्गलपरमामाणु * अनंतप्रदेशी छे, परमाणुआ अनंताळे एम पांच द्रव्य सप्रदेशीछे अने छठ्ठो काल अप्रदेशी छे. छ द्रव्यमां एकधर्मास्तिकाय, बीजो अधर्मास्तिकाय, त्रीजो आकाशास्तिकाय ए ऋण ते एकेक द्रव्यछे, तथा एक जीवद्रव्य बीजो पुद्गलद्रव्य श्रीजो कालद्रव्य ए त्रण द्रव्य अनेकअनेकछे, छ द्रव्यमां एक आकाशद्रव्य क्षेत्रछे, अने बीजां पांच द्रव्य क्षेत्रीछे; निश्चयनयथी छ द्रव्य पोतपोताना कार्ये सदा प्रवछे माटे सक्रियछे; अने व्यवहारनययी जीव तथा पुद्गल ए बे द्रव्य सक्रियछे, तेमां पण पुद्गल सदा सक्रियछे, अने जीव द्रव्यतो संसारी थको सक्रियछे; पण सिद्धअवस्थायें थको संसारी क्रिया करवाने अक्रिय छे; तथा बाकीना चार द्रव्य तो अक्रियछे; निश्चयनयथी छ द्रव्य नित्यछे. ध्रुवछे; अमे उत्पादव्ययेंकरी अनित्यपणे पण छे तथा व्यवहारनयें जीव अने पुगल ए बे द्रव्य अनित्यछे, बाकीना चार द्रव्य नित्यछे, यद्यपि उत्पादव्ययध्रुवपणे सर्व पदार्थ परिणमेछे तोपण एक धर्म, बीजो अधर्म, त्रीजो आकाश, चोथो काल, ए चार द्रव्य सदा अवस्थितछे ते माटे नित्य कद्यां. छ द्रव्यमां एक जीव द्रव्य अकारण छे अने पांच द्रव्य कारण छे. केमके पांचे द्रव्य जीवने भोगमां आवे छे माटे कारण कहिये. केमके धर्मास्तिकाय चालवानो साह्य आपे छे. अधर्मास्तिकाय freeहेवान साह्य आपे छे. आकाशास्तिकाय अवकाश आपे छे. पुद्गलास्तिकाय जीवने मधुरादि, सुरभिगंधादिक तथा सकोमल स्पर्शादिक भोगपणे थाय छे तथा कालद्रव्य ते जीवने जरा, बाल, * पुद्गलास्तिकायना स्कन्धो पर्यायो अनन्तप्रदेशी छे. For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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