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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार. १८५ अर्थ || ते प्रथम ग्रंथिभेद करीने शुद्धश्रद्धावान् तथा शुद्ध ज्ञानी जे जीव ते प्रथम त्रण चोकडीनो क्षयोपशम करीने पाम्यो जे चारित्र ते ध्यानें एकत्व थायीने क्षपकश्रेणि मांडी अनुक्रमे घातिकर्म क्षय करीने केवलदर्शन पामे. पछे ए सयोगी गुणें जघन्यथी अंतर्मुहर्त अने उत्कृष्टो आठ वरश उणापूर्वकोडी रहीने कोइक केवली समुद्घात करे, कोइक केवली समुद्घात न करे; पण आवर्जिकरण सर्व केवली करे ते आवज्जिकरणनुं स्वरूप कहे छे-इहां आत्मप्रदेशे रह्या जे कर्मदल ते पेहेला चले छे, पछे उदीरणा थाय छे, पछे भोगवी निर्जरे छे. तिहां केवलीने जिवारे तेरमें गुणठाणे अल्पायु रहे तिवारे आवज्जिकरण करे छे. ते आत्मप्रदेशगत कर्म्मदलने प्रति समये असंख्यातगुण निर्जरा करवी छे तेटला दलने आत्मवीर्ये करीने सर्व चलायमान करी मूके एवं जे वीर्यनुं प्रवर्तन ते आवज्जिकरण कहिये. एम करतां त्रण कर्म्मदल बघतां रह्या तो समु वात करे नहीतो न करे ते माटे आवज्जिकरण सर्व केवली करे. पछे तेरमा गुणठाणाने अंते योगनो रोध करीने अयोगी अशरीरी, अनाहारी अप्रकंप घनीकृत आत्मप्रदेशी थको, पांच लघु अक्षर जेटलो काल अयोगी गुणठाणे रहीने, शेषसत्तागत प्रकृति विद्यमान तथा अविद्यमान स्तिबुक संक्रमें सत्ताथी खपावी, सकल पुल संगपणाथी रहित थयी, तेहिज समयें आकाश प्रदेशनी बीजी श्रेणिने अणफरसतो थको लोकांते सिद्ध कृतकृत्य संपूर्ण गुण प्रागभावी पूर्ण परमात्मा परमानंदी अनंत केवलज्ञानमयी, अनंत दर्शनमयी, अरूपी सिद्ध थाय. उक्तं च उत्तराध्ययने "कहिं पहिया सिद्धा, कहिं सिद्धा पर्यट्ठिया ॥ कहिं वोंदिं चइत्ताणं ॥ कत्थ गंतूण सिज्झई ॥ अलोए पडिहया सिद्धा, लोयग्गे य पइट्टिया || 24 ११३ • Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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