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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार. सापेक्षाः सम्यक दर्शनप्रतिनयं भेदानां शतं तेन सप्तशतं नयानामिति अनुयोगद्वारोक्तत्वात् ज्ञेयं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्थ | ए सात नयमां आद्यना चार नय जे छे वे अविशुद्ध छे शा माटे के जे पदार्थ के० द्रव्य तेने सामान्यपणे कहेवाना अधिकारी छे ए नयनुं किहां एक अर्थनय ए पण नाम छे ते अर्थ शब्दे द्रव्य लेबुं तथा शब्दादिक ऋण नय ते शुद्ध नय छे केमके शब्दना अर्थनी एने मुख्यता छे पेहेला नय ते भेदपणे वचनने वांछे छे अने शब्दादिक नय वे लिंगादिके अभेद वचने अभेद कहे तथा मिन्न वचने भिन्नार्थ कही माने अने समभिरूढ ते भिन्न शब्द तेने वस्तु पर्याय न माने तथा एवंभूत ते भिन्नगोचर पर्यायने मिन्न माने जे चेष्टा करतो होय तेने घट कहे पण खूंणे पड्यो घट कहे नही चित्राम करतो होय तथा तेज उपयोगें वर्ततो होय तेने चित्रकार कहे पण तेज चित्रकार सुतो होय अथवा खावा बेठो होय तेने चित्रकार न कहे केमके ते उपयोग रहित छे माटे ए नय ते शब्द तथा अर्थने ए भेदपणो माने छे अने अर्थथी शून्य शब्द ते प्रमाण नयी अने शब्द प्रधान अर्थ ते द्रव्यने गौणपणे वर्तता शब्दादिक ऋण नय छे एम तत्वार्थ टीका मध्ये को छे. १०३ १७५ ए सात नयने विषे पेहेलो नैगमनय ते सामान्य विशेष बेहने माने छे संग्रहनय ते सामान्यने माने छे व्यवहारनय विशेषने माने छे अने द्रव्यार्थावलंबी छे तथा ऋजुसूत्र तो विशेष ग्राहक छे ए चार ते द्रव्यनय छे अने पाछला: शब्दादिक ऋण नय ते पर्यायार्थिक विशेषावलंबी भावनय छे तथा For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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