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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार. अजीव ते चेतना रहित अभेद छे. अजीवमध्ये जे धर्मास्तिकाय द्रव्य ते चलनसहकारनें करे छे, पण बीजा अजीवद्रव्य ते ए कार्य करता नथी. एम धर्मास्तिकाय थिरसहायगुणनें करे छे. आकाश अवगाह दाननें करे छे. पुद्गलरूपी आवरण स्कंधादि परिणमन करे छे. एम सर्व द्रव्यनें भेद छे, तोज भिन्न भिन्न द्रव्य कहेवाय छे. इहां कोइ कहेशेके जीवअनंता तेतो सरिखा छे तो सर्व जीवनें एकद्रव्य शावास्ते न कह्यो ? तेने उत्तर जे रूपैया सोनारूपापणे अथवा धवलापणे तोलपणे सरिखा छे, पण वस्तुना पिंडपणे भिन्न छे, तेमाटे सोनेपण भिन्न भिन्न कहियें छैयें. तेम जीवने पण भिन्न भिन्न कहि यें. वली उत्पाद व्ययनो फिरवो सर्वमां तेज रीतनो छे, पण पलटण ते एक रीतनो नथी, तथा अगुरुलघुनी हानिवृद्धिनो फिरवो पण सर्व द्रव्यमां पोतपोताने छे, तेथी सर्व जीव तथा सर्व परमाणु मिन्न छे, ए भेद स्वभाव जाणवो. " तन्मयतावस्थानाधारताद्यभेदेन अभेद स्वभावः " तथा तन्मयता अवस्थानतानो अभेद छे अने आधारतानो पण अभेदपणो छे ते अभेद स्वभाव छे. तथा भेदनो जो अभावपणो मानियें एटले वस्तुमां भेदपणो न मानियें तो सर्व गुण तथा पर्यायनो संकर के० एकमेकपणो ए दोष लागे, तो गुणी कोण ? तथा गुण कोण ? द्रव्य कोण ? एम गुणपर्यायने केइ द्रव्यनो कयो पर्याय एम वेहेंचण थाय नही. गुण तथा गुणी तथा जे ओलखवा योग्य लक्षण तेनुं चिन्ह तथा कारणधर्म तथा कार्यधर्मता ए बे जुदा पडे नही. कार्यधर्म तथा कारणधर्मनो नाश थाय माटे वस्तमां भेद स्वभाव मानवो For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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