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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार. प्रतिद्रव्यं स्वकार्यकारणपरिणमनपरावृत्तिगुणप्रवृत्तिरूपा परिणतिः अनन्ता अतीता एका वर्तमाना अन्या अनागता योग्यतारूपास्ता वर्तमाना अतीता भवन्ति अनागता वर्तमाना भवन्ति शेषा अनागता कार्ययोग्यतासनतां लभन्ते इत्येवंरूपावुत्पादव्ययौ गुणत्वेन ध्रुवत्वं इति तृतीयः। अत्र केचित् कालापेक्षया परप्रत्ययत्वं वदन्ति तदसत् कालस्य पञ्चास्तिकायपर्यायत्वेनैवाऽऽगमे उक्तत्वादियं परिणतिः स्वकालत्वेन वर्तनात् स प्रत्यक्षं एवं तथा कालस्य भिन्नद्रव्यत्वेऽपि कालस्य कारणता अतीतानागतवर्तमानभवनं तु जीवादिद्रव्यस्यैव परिणतिरिति ॥ अर्थ ॥ सर्व द्रव्यने विषे स्व के० पोतार्नु कारण परिणमन परावृत्ति के० पलटणपणे गुणनी प्रवृत्तिरूप परिणमन छे ते परिणति अनंति अनंत जातिनी अतीतकाले थइ छे अने अनंतिजातिनी एक वर्तमान काले छे अने बीजी अनागत योग्यतारूपपणे अनंतिछे ते वर्तमान परिणति ते अतीत थाप के एटले ते परिणतिमध्ये वर्तमानपणानो व्यय अने अतीतपणानो उत्पाद तथा परिणतिपणे ध्रुव छे अने अनागतपरिणति ते वर्तमान थाय छे तिहां अनागतपणानो व्यय, वर्तमानपणानो उत्पाद अने छतिपणे ध्रुव अने अनागत कार्य योग्यता ते दूर हता ते आसन्न के० नजीकपणो पामे एटले दूरतानो व्यय अने नजीकतानो उत्पाद तथा अतीतमध्ये दूरतानो उत्पाद अने नजीकतानो व्यय ए रीतें सर्व द्रव्यनेविषे अतीत वर्तमान तथा अनागतपणे परिणति छे, ते परिणमेज छे. ए द्रव्यने विषे 16 ४९ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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