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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ११८ देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार. रने कारणे राग हतो तेहिज वस्त्र धनने कारण प्रते राग थयो ते कारण नवा रागनो नवापणो पण राग रहित आत्मा केवारे नही, ए पारंपर्य एटले परंपरा नित्यता कहियें. बीजुं नाम संतति नित्यता जाणवी, ते कारण योगे निमित्तें नीपजे, नवा नवा पर्यायने परिणमवे एटले पूर्व पर्यायने व्ययथवे तथा अभिनव पर्यायने उपजवे अनित्य स्वभाव जाणवो. एटले उत्पत्ति के० उपजवो व्यय के० विणसवो एवो जे स्वभाव ते अनित्य स्वभाव जाणवो. 7 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्र नित्यत्वं द्विविधं कूटस्थं प्रदेशादिनां परिणामित्वं ज्ञानादिगुणानां तत्रोत्पादव्ययावनेकप्रकारौ तथापि किञ्चिल्लिख्यते विस्रसाप्रयोगजभेदाद् द्विभेदो सर्वद्र व्याणां चलनसहकारादिपदार्थक्रियाकारणं भवत्येव ॥ अर्थ | तिहांवली ग्रंथांतरे नित्यपणो वे प्रकारे को छे एक कूटस्थनित्यता, बीजी परिणामिनित्यता छे. जीवना असंख्यात प्रदेश ते संख्यायें तथा क्षेत्रावगाह पलटतो नथी ते तथा गुणनो अविभाग ते सर्व कूटस्थनित्यता छे. ज्ञानादिक गुण ए सर्व परिणामिक नित्यतायें छे. केमके गुणनो धर्मज ए छे. जे समयें समयें स्वभाव कार्यपणे परिणमे अने जे कार्य होय ते परिणामिकपणेज होय ए नीतिज छे अने जो ज्ञानगुणने कूटस्थनित्यतापणे मानियें तो पेहेले समये जे ज्ञाने करी जाण्यो तेहिज जाणपणो सदासर्वदा रहे पण तेम तो नथी. ज्ञेय तो नवनवी रीतें परिणमता देखाय छे तो ते ज्ञेयनी नवनवी अवस्था ज्ञान जाणे नही एटले पहेले समय जे रीते ज्ञान परिणमे छे ते रीतें परिणमन जोवु ४६ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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