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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार. पणे छे, अभेदपणे छे, इत्यादिक ते अस्तिधर्ममां अनेकांतता छे तेने ग्रहे छे. केमके वस्तुनो एकगुण तेमां अस्तिपणो छे नास्तिपणो छे, नित्यपणो छे, अनित्यपणो छे, भेदपणो छे, अभेदपणो छे, वक्तव्यपणो छे, अवक्तव्यपणो छे, भव्यपणो छे, अभव्यपणो छे, ए अनेकांतपणो एह ज स्याद्वाद छे तेनुं संकेतिक वाक्य ते स्यात्पद छे ए रीते जाणवो. आत्मद्रव्यने विषे स्वधर्मनी अस्तिता छे, परधर्मनी नास्तिता छे, स्वगुणनो परिणमवो अनित्य छे अने तेज गुणपणे नित्य छे, तथा द्रव्य पिंडपणे एक छे अने गुण पर्यायपणे अनेक छे, तथा आत्मा कारणपणे कार्यपणें समय समयमां नवानवापणो जे पामे छे ते भवनधर्म छे तो पण आत्मानो मूलधर्म जे पलटतो नथी ते अभवनधर्म छे. इत्यादिक अनेक धर्म परिणति युक्त छे ए रीते षट् द्रव्यने जाणी निर्धारीने हेयोपादेयपणे श्रद्धान भासन थाय ते सम्यक ज्ञान, सम्यक् दर्शन छे ए जीवनी अशुद्धता ते परकर्त्ता परभोक्ता, परग्राहकता, टालवाना उपायनुं साधन ते साधन करवे आत्मा आत्मापणें मूलधर्मे रहे ते सिद्धपणो तेनी रुचि उद्यमपणो करवो एहिज श्रेय छे. स्यात्अस्ति, स्यान्नास्ति, स्यात् अवक्तव्यरूपास्त्रयः सकलादेशाः संपूर्णवस्तुधर्मग्राहकत्वात्, मूलतः अस्तिभावा अस्तित्वेन सन्ति, नास्तित्वेन सन्ति एवं सप्तभङ्गाः एवं नित्यत्वसप्तभङ्गी अनित्यत्व सप्तभङ्गी एवं सामान्यधर्माणां, विशेषधर्माणां गुणानां पर्यापाणां प्रत्येकं सप्तभङ्गी तथा 簿 For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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