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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४ देवचंद्रजीकृत नयचकसार. पणे छे अने परपर्यायें जे अन्य द्रव्यने परिणमे तेनो असद्भाव के० अछतापणो परिणमे छे तथा जे छता अथवा अछता पर्याय तेनो छतापणो छे. कोइकपणे अछतापणो छे माटे छता अछतापणो पण तेज कालें छे. केमके वस्तुमध्ये अनेक धर्म छे ते सर्व केवलीने एक समये समकालें भासे छे ते पण वचने भंगांतरेज कही शके अने छद्मस्थने श्रद्धामां तो सर्व धर्म समकाले सहे छे पण छद्मस्थनो उपयोग असंख्यात समयी छे, अनुक्रमे छे पूर्वापरसापेक्ष छे तेथी सप्तभंगे भासन छे जे वस्तुमां समकालें छे, समकीतिनी श्रद्धामां समकाले छे अने केवलीना भासनमा समकाले छे ते श्रुतज्ञानीना भासनमां क्रमपूर्वक छे. केके भाषा सर्व क्रमे कहेवाय छे तेथी असत्य थाय तेने जो स्यात्पदेंप्ररुपियें जाणियें तो सत्य थाय माटे स्यात्पूर्वक सप्तभंगी कहियें. द्रव्य गुणपर्याय स्वभाव सर्व मध्ये छे ते रीतें सद्दहवी ते दृष्टां करी कहे छे ओष्ठ के० होठ, गाबड, कांठो कपाल, तलो, कुक्षिपेटो, बुध्न पोहोलो इत्यादि स्वपर्या में करी घट छतो छे, ते घटने स्वपर्या यें छतापणे अर्पित करि यें तेवारें ते कुंभकुंभ धर्मे सन् के० छतो छे पण अछतादिक धर्मनी छति सापेक्ष राखवाने स्यात्पूर्वक कहेवो एटले स्यात् अस्तिघटः ए प्रथम भंगो जाणवो तथा जीवादि द्रव्यने विषे जीवना ज्ञानादि गुण तेने पर्यायें जीव द्रव्यने नित्यादि स्वभावें करीने स्यात् - अस्तिजीवः एम सर्व द्रव्यने कहेवो. यद्यपि जीव तथा अजीनो नित्यपणो सरिख भासे पण ते एनो तेमां नही अने तेनो एमां नही जो पण जीव सर्व एक जातीय द्रव्य छे पण एक जीवमां जे ज्ञानादि गुण छे ते बीजा जीवमां नथी माटे सर्व द्रव्य स्वधर्मेंज अस्ति छे. एम स्यात् अस्तिजीव ए प्रथम अंग जाणवो. ३२ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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