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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९० देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार. अर्थ || सर्व द्रव्यने आधारभूत अवगाह स्वभावी जे जीव तथा पुद्गलने अवगाहनानो ओभानो हेतु ते आका - शास्तिकाय द्रव्य कहियें. तेना प्रदेश अनंता छे. लोक तथा अलोक रूप छे तेमां जे क्षेत्रे जीव तथा पुद्गल तथा धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय छे ते क्षेत्रने लोक कहियें अने केवल एक लोक मात्र आकाशज जिहां छे तेने अलोक कहियें एटले जे लोक ते जीवादि द्रव्य सहित अने जीवादिक द्रव्य जिहां नथी तेने अलोक कहियें ते, अलोकना प्रदेश अनंता छे, अवगाहक धर्मे सर्व द्रव्य एमां समाय छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कारणमेव तदन्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः ॥ एकरसवर्णगन्धो द्विस्पर्शः कार्यलिंगीच ॥ पूरणगलनस्वभावः पुद्गलास्तिकायः स च परमाणुरूपः । ते च लोके अनन्ताः एकरूपाः परमाणवः अनन्ताः व्यणुका अप्यनन्ताः त्र्यणुका अध्यनन्ताः एवं संख्याताणुका स्कंधा अप्यनन्ताः असंख्याताणुकस्कंधा अप्यनन्ताः एकैकस्मिन् आकाशप्रदेशे एवं सर्वलोकेऽपि ज्ञेयं एवं चत्वारोऽस्तिकायाः अचेतनाः । अर्थ || हवे पुद्गल द्रव्यनुं स्वरूप लखियें छैयें. जे पूरण to पुरायें वर्णादिगुणे वधे, गली जाय, खरि जाय, वर्णादि गुण घटि जाय एवो जेमां स्वभाव छे ते पुद्गलास्तिकाय कहियें ते मूल द्रव्यं परमाणुरूप छे ते परमाणुनुं लक्षण कहे छे. द्व्यणुकादिक जेटला स्कंध छे ते सर्वनुं अत्यंत के० मूल कारण परमाणु छे एटले सर्व स्कंधनुं परमाणु कारण छे पण परमानुं कारण कोइ नथी, कोइनुं नीपजाव्यो थयो नयी अने कोइ १८ For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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