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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १० ) पडवायी जैन काममां आनंदनी लागणी फेलाई, तेमना ग्रंथों ज्यांयी ज्यांथी मळे एवो संभव - हृतो त्यां त्यां अनेक स्थळे अनेक महाशयो उपर पत्रो लख्या. ग्रंथोनी प्राप्ति माटे पत्रव्यवहार. श्रीमद् मुळचंदजी महाराजना संवाडाना आचार्य श्रीविजय कमळसूरिजी तथा तेमना शिष्य पन्यास केसरविजयजी, तथा मुनी लाभविजयजी, तथा मुनीराज श्रीहेतमुनिजी, तथा प्रवर्तकजी महाराजश्री कान्तिविजयजी, तथा मुनिराज श्री जिनविजयजी, तथा पन्न्यासजी महाराजश्री दानविजयजी तथा मुनिमहाराजश्री श्रीकृपाचंद्रसूरिजी तथा पन्यासजीश्री भावविजयजी (पाली ) तथा मुनीश्री नागचंद्रजी ( कच्छ ) तथा मुनिश्री चित्तविजयजी तथा वालुचर ( मुर्शीदाबाद ) निवासी जवेरी अमरचंदजी बोथरा तथा भोजक गीरधरभाई हेमचंद तथा रा. रा. चीमनलाल डी० दलाल तथा जवेरी भोगीलाल ताराचंद तथा रा. रा. मोहनलाल दलीचंद देसाई तथा अन्य मुनिराज तथा ग्रहस्थो अने संस्थाओ साधे पत्रव्यवहार कर्यो. कया कया ग्रंथो क्यां क्यांथी मळ्या. १ आगमसारनी एक जुनी प्रति के जेमां प्रतिमापूजा, पुष्पपूजाचर्चा, गुणस्थानक स्वरूप, पापस्थानक स्वरूप ए चार विषयो के जे छपाएला आगमसारनां नहोता ते प्रत पादराना भंडारमाथी मळी अने तेवा वधारावाली बे प्रतिओ सुरतना श्रीमोहनलालजी महाराजना भंडारमांथी मळी * तथा मुनिश्री लाभविजयजी पासेथी एक प्रति तेवा वधारावाळी मळी. * प्रत नं. ४०९-५६० For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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