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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८) पृ. ६५५ गाथा ३१ ना टबामां केवलिने ७ योगमां " असत्य मनयोग तथा “ असत्यवचनयोग " गणाव्यो छे ते स्थाने असत्यामृषामनयोग तथा असत्यामृषावचन योग गणवो. पृ. ६६१ पं. १० “ मानकषायीयी क्रोधीसुं मायावी कपटी अधिकार छ " ए स्थाने मानकषायीयी क्रोधी अधिक छे ने क्रोवीथी मायावी कपटी अधिक छे एम वांचq. पृ. ६६१ पं. पं. १४ " च्यारगतिमें समक्रीते सर्व जीव छे." ए स्थाने " चारे गतिमां समकीती जीवने अवधि ज्ञान होय छे माटे " एम वाचवू. पृ. ७३६ पं. २ " औदारिकथी वैक्रिय सूक्ष्म, भाषाथी उश्वास सूक्ष्म, ” एमां मध्ये रही गयेलो पाठ आ प्रमाणे जाणवो. औदारिकथी वैक्रिय सूक्ष्म, वैक्रियथी आहारक सूक्ष्म, आहारकथी तैजस सूक्ष्म, तैजसथी भाषा सूक्ष्म, भाषाथी उश्वाससूक्ष्म. पृ.८०९ " चार वार श्रेणिगत अने पांचमीवार पडतां" ए प्रमाणे उपशम सम्यक्त्वनी ५ वार प्राप्ति कही छे परन्तु अनादि मिथ्यात्वीने सम्यक्त्वनी प्रथम प्राप्तिमा एकवार अने चारखार श्रेणिमां, ए रीते ५ वार उपशम सम्यक्त्वनी प्राप्ति जाणवी.. तथा आठमे गुणठाणे अटकीने क्षपकश्रेणि मांडीने केवल ज्ञान पामे" एम का छे, परन्तु श्रेणियी फ्डी ७ में अप्रमत्त गुणठाणे आवीनेज क्षपकश्रेणि मांडी शकाय परन्तु ८ मेथी नहि एम जाणवू. For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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