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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुणठाणाअधिकार. समकित पामे, एअगीयारमो गुणठाणो एक जीव च्यारवार पामे, एक जीव एकभवमांहि बेवार पामे, एहनी स्थिति जघन्य एक समय उत्कृष्ट अंर्तमुहर्तनी छे. एअगीयारमो, हवे बारमो क्षीणमोह गुणठाणो ते जे जीव आठमा गुणठाणायी कर्म खपावतो तीव्र वीरज निरमल उपयोग शुद्ध शुक्ल ध्यानने बले नवमे दशमे गुणठाणे मोहनी कर्म खपावी बारमे गुणठाणे आवे, एहशुद्ध शुक्ल ध्याननो बीजो पायो एकत्ववितर्क अप्रविचार ध्यावे, एहथी आयु बले घनघाती तीन कर्म ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय अंतराय खपावे, एहनी स्थिति अंर्तमुहूर्तनी छे. १२ तेरमो गुणठाणो सयोगी केवली जे जीव बारमाने अंते ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, अंतराय, ए खपे केवलज्ञान केवलदर्शन प्रगटे, लोक अलोकना सर्व भाव अतीतकाल अनागतकाल वरतमानकाल सर्व प्रत्यक्ष आत्मबले इन्द्रिय विना जाणे देखे, इहां जे अंतगड केवली होवे ते केवली समुदवात करीने मोक्ष जाय अने जे केवलीनो आऊखो वणो होवे ते अनेक जीवने उपगार करतां अनेकदेशना देता विचरे देशे उणीपूर्व कोडी लगे विचरे तथा जे तीर्थंकरदेव केवलीपणे विचरे ते चोत्रीश अतिशय तथा आठ प्रातिहारज विराजमान थका नवा सोनाना कमले पग थापता चाले, योजनप्रमाण मांडलेसमोसरणे सोनाने सिंहासने तीन छत्र माथे वीराजता बे पासे चामरनी जोड विझता हजार धजा इंद्रधजा लहेकता देशना देता जवन्य बहोतेर वरसने आऊखे उत्कृष्टे चौरासी लाख पूरवने आऊखे विचरे, अनेक जीवने धरम उपदेश दे, गणधर थापना करे, साधु साध्वी श्रावक श्राविका ए च्यार संव थापे, द्वादशांगी सिद्धांत प्ररूपे, अने सामान्य केवलीने For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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