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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देवचंद्रजीकृत नयचक्रसार. श्लोक ॥ द्रव्याणां च गुणानां च, पर्यायाणां च लक्षणं ॥ निक्षेपनयसंयुक्तं, तत्त्वभेदैरलङ्कृतम् ॥ तत्र तत्त्वभेदपर्यायाख्यातस्थजीवादेवस्तुनो भावः स्वरूपतत्त्वम् अर्थ ॥ द्रव्यना गुणना तथा पर्यायना लक्षण जे ओलखाण ते निक्षेपे करी तथा नयें करी युक्त तत्वना भेदें सहित कहुं छु तत्र के तिहां जिनागमने विषे तत्व जे वस्तुस्वरूप, भेद तेना जूदा जूदा भेदपर्याय तेमां रह्या जे धर्म एटला प्रकारे व्याख्या के०अर्थकहेवू तेणे करीने यथार्थ व्याख्यान थाय तिहां तत्त्वतुं लक्षण कहे छे. व्याख्यान करवा योग्य जे जीवादिक वस्तु तेनो मूलधर्म ते वस्तुनुं स्वरूप तत्त्व कहिये जेम कंचननुं स्वरूप पीत गुरु स्निग्धतादि तथा एन कार्य भरणादिक अने एहनुं फल ते एहथी अनेक भोग्यवस्तु आवे एम जीवनुं स्वरूप ज्ञान दर्शन चारित्रादि अनंतगुण तथा जीवनुं कार्य सर्वभाव- जाणवू प्रमुख ए रीतें अमेदपणे रह्या जे धर्म ते सर्व वस्तुनुं तत्त्व कहिये. येन सर्वत्राविरोधेन यथार्थ या व्याप्यव्यापकभावेन लक्ष्यते वस्तुस्वरूपं तल्लक्षणं तत्र द्रव्यभेदा यथा जीवा अनंताः कार्यभेदन भावभेदा भवन्ति क्षेत्रकाल भावभेदानामेकसमुदायित्वं द्रव्यत्वम् अर्थ ।। हवे लक्षण कहे छे. जे गुणे करी सर्वद्रव्य स्वजातिमां अविरोधिपणे यथार्थपणे १ अतिव्याप्ति २ अव्याप्ति असंभवादि दोषरहित वस्तु जे व्याप्य तेहने विषे व्यापकपणे लखिये For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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