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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९६ प्रतिमापुष्पपूजासिदि. vvvAAM आभरणअलंकार पहेर्या, घरयी निकल्या ए रीते सिद्धार्थ राजा तथा रुखभदत्त, सुदरशन शेठ इम सुभद्द पुत्र श्रावकसंखपुष्कली श्रावक कार्तिक शेठ वांदवा गया छे तेवारे कयबलिकम्मा तथा पछी घरे आवी साहमीवछल करीने दीक्षा लेवा निकल्या तेवारे न्हाया कयबलिकम्मा ए पाठ छे, इत्यादिक श्रावक अन्य देवनी पूजा न करे गोत्रज न पूजे, अरिहंत देवनेज पूजे, तथा कोइ कहेस्ये कयबलिकम्मा पाठ कठीयारा प्रमुख अनेक थानके छे तेमां स्याना छे ? पोते जेहने देवबुद्धे माने ते तेहने पुंजे तथा देवदत्त बालके कीम पुंजा करी हशे तेतो बालकने मावीत्रे पुंजा करावी तो कां न करे ? आज पण बालक पुंजा करता दीसे छे तो कयबलीकम्मा ए पाठनो बीजो अर्थ शाने करो छो ? तथा दीक्षा महोच्छव घणा दीसे छे पण तिहां देहरा प्रतिमानो पाठ नथी. तेहनो उत्तर जे दीक्षाने उतावला थयो तेवा, साधुने वहोराव्या रह्या नथी तो देहरा कराववा तो घरे स्याने रहे ? अने पहेला देहरा प्रतिमा छे तेतो नंदीसूत्रे आगमनो घणो पाठ जोस्यो तो सर्व समो पडशे तथा तुम्हे पुछयु जे तीर्थकरग्रहस्स्छपणे छतां साधु साध्वी श्रावक श्राविकाए वांद्या नथी तेनो उत्तर घणा वांद्या छे. ते पाठ ज्ञातासूत्रमां छे. तथा तुमे लख्यो जे प्रतिमा एकेन्द्रिदल छे तेहवो वचन संसारनो जेहने भय नहुवे ते बोले ? जे कारणे श्रीभगवतीजी तो जिणपडीमा कही बोलावी छे. देहराने सिद्धायतन कही बोलाव्यो तो तुमे कठोर वचन स्याने बोलो छो तथा तुमे दिसीवंदना करो छो ते दीसी तो अजीव छे तो कीम वांदो छो ? तिहां तुम्हे कहेस्यो जे अम्हारा मनमें तो सिद्ध छे तो जिनपडिमा वांदता पिण अमारा मनमा सिद्ध ले. तथा For Private And Personal Use Only
SR No.008661
Book TitleShrimad Devchandra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year
Total Pages1084
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Worship
File Size15 MB
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