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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २३० काले जे क्षेत्रे जे करवुं घटे, स्वपरजीवोना धर्म हितार्थे जेहजो, तेह करावे करे अने अनुमोदता, अल्पदोषने धर्म घणो करे तेहजो, प्रीतलडी० ॥११॥ सूरि गुरुनी आज्ञाए वर्ते मुनि, यता कषायो रोधे साधे धर्मजो; आत्मराज्यनी स्वतंत्रता जे साधता, करे कर्म पण उपयोगे जे अकर्मजो. प्री० ॥ १२ ॥ पूर्णानंदी आतमज्ञाने अनुजवे, साधक बाधक कृत्याकृत्य विवेकजो; जैनधर्म उपदेशे जक्ताने भलो, रहे समाधि एवी धारे टेकजो. प्री० ॥ १३ ॥ पूजो वंदो गावो मुनिपदने जलुं निश्चयदृष्टिने धारी व्यवहारजो: बुद्धिसागरमुनिसेवानक्तिबळे, क्षणमां प्रभुपद पामे नरने नारजो प्री० ॥ १४ ॥ 7 " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साधु ते निज आतमा; शुद्धतम उपयोगरे; शुं मुंगे शुं लोचथी, त्यागे शुं बाह्य भोगेरे. साधु० ॥ १४ ॥ शुद्धातमरमणी मुनि, मोहनी वृत्ति रोकेरे; हर्षे नहि जे बाह्यमां, रहे न बाह्यमां शोकेरे. साधु० ॥ १६ ॥ समभावी भवमुक्तिमां, सहजानंदता भो गीरे; रागने त्यागथी भिन्न जे, आतम देखे योगीरे. साधु० ॥ १८ ॥ निःसंगी निष्कामी जे, घटमां सिद्धि प्रकाशेरे; आनंदधी उभराइने, प्रसन्नताए For Private And Personal Use Only
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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