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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir શ્ય जेहजो, आत्मसमाधि योगे घटमां वर्तता, निष्कामीने सम बे वनने गेहजो, प्रीतलडी० ॥ ४ ॥ धीरे धीरे मनने साधे साधुजी, सद्गुण साधे करता दुर्गुण त्यागजो, आसक्ति वण आचरोमां वर्तता, मुनिपर धारो स्वार्पण करीने रागजो, प्रीतलडी० ॥ ४ ॥ आत्मशुद्धिहेते सापेक्षे साधना, गौणने मुख्यपणे जाणे जे योगजो, उत्सर्गेने जे अपवादे वर्तता, निर्लेपी थे जोगवे सुख दुःखजोग जो, प्रीतलडी० ॥ ६ ॥ आपत्काले आपदधमें वर्तता, बाह्यसंगमां जे दिलमां निःसंगजो, ध्येयपणे निजदिलमां प्रभु प्रगटावता, प्रगटे मुनिनी संगे आतमरंगजो; प्रीतलडी० ॥ ७ ॥ अंतर बाह्यनी ग्रन्थिमां ममता नहीं, गुरु आज्ञाए सर्वे कर्ता कर्मजो. निर्भय खेदरहित अद्वेषी साधुजी, समताभावे अनुभवे शिव शर्मजो. प्रीतलडी० ॥८॥ समभावे मुक्ति छे सहु दर्शन विषे, क्रिया पंथ मत बाह्यथकी पण होयजो, तो पण मुनिभावे निश्चयसमकितवडे, समभावीने नमे न बाह्यनुं कोय जो. प्रीतलडी० ॥ १ ॥ गच्छनी निश्राए स्थविरो वर्ते सदा, गच्छोमां समभावे मुक्ति होयजो, सापेक्षाए हव कदाग्रह त्यागीने, मुख्यपणे आतम उपयोगी जोयजो. प्रीतली० ॥ १० ॥ जे For Private And Personal Use Only -
SR No.008634
Book TitlePooja Sangraha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1924
Total Pages620
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size24 MB
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