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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir rv.h".AAAAAAAAAARI परमात्मदर्शन. (१३) थाय ? किंतु द्वार विना पण अरूपी आत्मानो प्रवेश थाय छे एम सद्दहवें जोइए. (इति चतुर्थ प्रश्नोत्तरं) प्रदेशी-हे भगवन् तमारी युक्ति प्रमाणे तो समलक्षणयुक्त सर्व जीवो छे ते घटतुं नथी लक्षणनी साम्यताए सर्वमां सरखं बल होवू जोइए ? ते प्रत्यक्ष प्रमाण विरुद्ध छे जे कारण माटे बालके छोडेलो बाण नजीक पडे छे, अने तरुगे छोडेंलो बाण दूर पड़े छे. ए सर्व जीव देहनी ऐक्यताए घटे छ, लघु शरीरे लघुबल, मोटा शरीरे बल पण महत् माटे सर्व जीवोमां लक्षण साम्यताए समबलत्व अयुक्त छे माटे मारी प्रतिज्ञा सत्या समजवी. केशी-कोइ बलवान् तरूण पुरुष प्रत्यंचा चढावी बाण फेंके ते ज्यां सुधी भूमि उल्लंघे. ते ज धनुष्य चढावी बालक बाण फेंके ते युवान पुरुषे फेंकेला बाणे जेटली भूमि उल्लंघन करी छे तेटली भूमि आ उल्लंघन करे के नही ? । प्रदेशी-ते बाण आसन्न भूमीमां पडे पण पूर्वोक्त पुरुषं फेंकेलं बाण तेना जेटली भूमी अवगाही शके नही ? केशी-भला तेमां शो हेतु ? प्रदेशी-साधन वैकल्य तेमां हेतु छे. केशी-बालनुं शरीर निर्बल साधन छे धातुओना अपुष्टपणाथी, पृष्ट शरीर सबल साधन छे ते माटे सर्व जीवोमां लक्षणनी साम्यता अंगीकार कर. (इति पंचम प्रश्नोत्तरं) प्रदेशी-तमोए जीवोमां समलक्षणपणुं कर्तुं ते असन् छे, कारण के युवान अने बालकनी शक्तिनी (पराक्रम) भिन्नता छे. बाळकनी शक्ति अल्प छे, युवाननी विशेष छे. जो जीव एक For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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