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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परमात्मदर्शन. प्रश्न-जल सरोवरमा भर्यु होय छे त्यारे हजारो पशु पंखी मनुष्यादि तेमाथी जलपान करे छे, त्यारे जले पोतानुं दान बीजाना अर्थे शुं कर्यु ना कहेवाय ? उत्तर-अन्य जीवो जलपान करे छे ते पोतानी सत्ताथी करे छे, जलपान अन्य जीवो करे तेमां जलना जीवो राजी नथी, जलपान करवाथी जलना जीवोनो नाश थाय छे तेमां पोते राजी नथी, माटे ते दान कहेवाय नहीं. द्वीन्द्रियथी ते चतुरिन्द्रिय पर्यंत जीवो अभयदान पोते करी शकता नथी. पंचेंद्रियना चार प्रकार छे. १. देवता. २ मनुष्य. ३ तियेच. अने ४ नारकी. भुवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक ए चार प्रकारना देवो द्रव्य तथा भाव अभयदान करी पके छे. सम्यक्वधारकदेवो समकितनी अ. पेक्षाए भाव अभयदान करी शके छे, कारणके समकित पामेला देवताओ पोताना आत्मानुं स्वरूप समजे छे, पोताना आत्माने पोताना समाकित गुपनुं दान आपे छे' तथा अन्यदेवो तथा मनुप्योने धर्मनी श्रद्धा करावे छे, माटे बीजाने भाव अभयदान अर्पे . सर्व जातना देवताओनो मिथ्यात्व गुणस्थानकथी ते समकित गुणस्थानकनी अंदरमा समावेश थाय छे. बहु देवताओ धर्मभ्रष्टोने धर्ममां स्थिर करे छे, पण देवताओना करतां मनुष्यो अभयदानमा विशेष छे, कारण मनुष्यने वउद (चतुर्दश) गुण स्थानक में, जे दान पामवाथी आत्माने कोइनो भय रहे नहीं ए, भावमभयदान संपूर्ण मनुष्य पामेछ, अज्ञानी जीवने सत्यासत्यनी समजण पडती नवी तेने सद्गुरु त्रिजगद् दुःख दावानल मेघ समान धर्म देवनाथी मात्मस्वरुप समजावे छे, जड वस्तुनं स्वरूप समजावे छे, देवगुरु धर्मदं स्वरूप समजावे छे, नवतत्त्वद् विशेषसंस्था स्वरूप समजावे छ; अने अज्ञानी जीवने समजावे छेके For Private And Personal Use Only
SR No.008627
Book TitleParmatma Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1910
Total Pages432
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size21 MB
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