SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१ अंतर त्याग न वस्तुनो, बाह्य वस्तुमां राग; परनिंदा जिह्वा प्रदे, मनमां काळो काग. अदेखाइ जंमार हुँ, उपशम नहिं लगार; सदा क्रोधश्री धमधमुं, पापीनो शिरदार. कमा नहि तलमात्रने, पजवुं संत सदाय, परलवरीमां रक्त हुँ, निष्फल आयु जाय. साधु संत न पारखं करूं न सेवा लेश; वाद विवादे रक्त थइ, पामुं मिथ्या क्लेश. अभावमां व्यर्थ हुं, गाळु निशदीन काळ; स्मरण करुं नहि ताहरु, मुंजी माया काळ. १० दोष न देखुं श्रात्मना, परदोषोमां रक्त, करु न भक्ति संतनी, थयो कुसंगी नक्त. परोपदेशे दक्षता, वाणी वडु रसाळ; जागोगे जिन ए सहु, दीनोछार दयाल. हास्य कुतुहल में कर्यां, कीधां नक्ष अक्षः जिनवर जाषीत धर्ममां, कदी न राख्यं लक्ष. १३ मी न कीधुं ध्यान में, इचयां पूजामान, कदी न गाया ज्ञानीने, गायां कूमां गान. नम्यो न सद्गुरु देवने, घरी न आणा शील; शिक्षा देतां संतपर, कीधी मनमां रीस. जन मनरंजन हेतुथी, कीधां धार्मिक कर्म श्रात्मिक शुद्ध स्वनावनो, मूल्यो सत्यज धर्म. १६ For Private And Personal Use Only ६ ม ११ १२ १४ १५
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy