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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुरघट सुरतरु नपमा, प्रजने कहो केम गजेरे; आत्मिक सुखनी आगळे, चिंतामणि पण लाजेरे. २ लोकालोक प्रकाशता, महिमा अपरंपाररे; तारक वारक चनगति, सत्य स्वरुपाघाररे, अनि. ३ शुःबु अविनाशी तुं, अविचल नयनानंदरे; पामी सुरतरु पुण्यथी, सेवे बानल कोण मंदरे अ.४ अनुपम प्रनु गुण ध्यानथी, निशदीन मनमां राचुरे; बुद्धिसागर जिन ध्यावतां, लाग्युं स्वरूप शुः साचुरे.५ शान्तिः शान्तिः शान्तिः लोदरा. ॥ श्री वीरस्तुति ॥ हा ६५ ॥ वीर जिनेश्वर बंदीए, त्रिशला नंदन धीर; जयन्नंजन लगवंतजी, सर्व वीरमां वीर. १ प्रणमुं पदपंकज प्रेमथी, जयजय श्री जगदीश; अद्भूत चरित्र आपy, जाणुं विश्वावीश. २ स्मरतां चरित्र ताहरूं, गुण आवे निज अंग; रोम रोम ब्यापे अहो, वैराग्यादि अनंग. ३ क्यां सर्षपने सुरगिरि, तुज मुज अन्तर एम; वारंवार हुं विनवू, नाजे प्रनुजी केम. नथी योग्यता धर्मनी, नथी योग्य चारित्र नथी शक्ति तुजन्नक्तिमां,मन पण नहिं पवित्त, ५ For Private And Personal Use Only
SR No.008625
Book TitlePadsangraha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherSukhlalji Ujamshi and Manilal Vadilal Sanand
Publication Year1908
Total Pages210
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size9 MB
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