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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૧૭ मनदृष्टि अने आत्मदृष्टि. आतम आपोआप विचारा, तेरा सब है पसारा. आतम० मनदृष्टिसें बन्धन सब है, मन है सब संसारा; आत्मदृष्टि से बन्ध न मुक्ति, पुण्य न पापप्रचारा. आतम० १ मनदृष्टिसें जन्म मरण है, सुखदुःख काम विकारा; आत्मदृष्टिसें जन्म न मृत्यु, आनंद अपरंपारा. आतम० २ मन सेतान है आतम अल्ला, मन है सब अंधियारा; मन है माया कर्मकी जड है, मनका सब व्यवहारा. आतम० ३ सत्त्व रजस् तमसे है न्यारा, आतम सब आधारा; ज्ञानसें व्यापक पूर्ण निरञ्जन, शानीयोंकुं प्यारा. आतम० ४ तीन भुवनका शहेनशाह है, खेले खेल अपारा; आतम अव्वल आतम आखर, अनंत नूर उजारा. आतम० ५ आतमराज्यमें सब राज्योंका, होत समावेश सारा; आतमराज्यका नाश न कबहु, ज्यां नहि मनका मारा.आमम०६ मनसें होत गुलामी जीवोंकी, आतमप्रभु निर्धारा; बुद्धिसागर आत्ममहावीर, जिनवर है जयकारा. आतम० ७ आत्मकमाणी. आतम ऐसी कमाणी कमाना, आना नहि फिर जाना. आतम० ब्रह्ममहावीरमांहि फिरना, ब्रमामृतकुं खाना; ब्रह्ममहावीरमांहि सोना, ब्रह्मकुं पीना पाना. आतम० १ For Private And Personal Use Only
SR No.008544
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1923
Total Pages486
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size20 MB
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