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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૨૧૬ अनन्तब्रह्म वर्तुल. आतम आपोआप समर ले, करना होय सो कर ले. आतम० वेषाचारमतादिक वर्तुल, उनसें आगे विचर लें; अनंत वर्तुल शुद्धब्रह्म है, लिंगनात मन वर्तुल हद है, आत्मबल बेहद है घटघट, अनंतवर्तुल सर्ग व्यय जहीं, परब्रह्म महावीर है; निश्चय ऐसा कर लें. आतम० १ अंधेरा वहां पर है; ज्ञानप्रकाशसें तर है. आत्म० २ आपोआप स्वयं हि ऐसा, ज्ञान तो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानी घर है. आतम० ३ क्षुद्र लघु वर्तुल है; दर्शन मत पंथ धर्मादिक सब, मनकी ऐसी सबला है, आतम वीर अकल है. आतम० ४ आत्ममहाबरिमें मन लीनता, होतां सुख भरपूर है; अनंतमहावीर अनुभव आता, साकी स्वयं चकचूर है. आतम० ५ अनंत ब्रह्म महावीर वर्तुल, ऐसी जिसकी नजर है; सोहि आतम अल्ला अई, बाहिर ओर अंदर है. आतम० ६ मनकी उपाधि भवबन्धन है, ब्रह्मनूर सागर नामरूपवृत्ति लय होते, दूजाकी न खबर है. आतम० ७ अनंतनभसें ब्रह्म अनंत है, नारी वा नहि नर है: सबमायासें उसकी सत्ता एक सभर है, अज्ञानकुं ज्ञानीयोंका, दिलकी कहांसें बुद्धिसागर सुफी सनूरा, सब आलम में For Private And Personal Use Only पर है. आतम० ८ खबर है; अमर है, आतम० ९
SR No.008544
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1923
Total Pages486
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size20 MB
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