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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९५ श्री यशोविजय वाचककृत. पार्श्वनाथ भाव पूजा स्तवनम् . पूजाविधिमांहे भावीएजी, अंतरंग जे भाव. ते सवि तुज आगळ कहुजी, साहेब सरल स्वभाव मुहंकर अवधारो प्रभुपास-ए टेक. ॥ १॥ दातण करता भावीएजी, प्रभु गुण जल मुख शुद्ध: उल उतारी प्रमत्तताजी, हो मुज निर्मल बुद्ध. सुहं ॥२॥ यतनाए स्नान करीजीएजी, काढो मयल मिथ्यात; अंगुछो अंग शोषवीजी, जाणुं हुं अवदात. सुहं ॥३॥ खीरोदकना धोतीआंनी, चिंतवो चित्त संतोष अष्ट कर्म संवर भलोजी, आठ पडो मुख कोष.. सुई ॥४॥ ओरसीयो एकाग्रताजी, केशर भक्ति कल्लोल; भद्धा चंदन चिंतवोजी, ध्यान धोळ रंगरोळ. सुहं ॥५॥ भाल (बहु) प्रभु आणा भलीजी, तिलकतणो ते भाव जे आभरण उतारीएजी, ते उतार्या परभाव. सुहं ॥६॥ जे निरमाल्य उतारीएजी, तेतो चित्त उपाध; पखाल करतां चिंतवोजी, निर्मल चित्त समाधि. मुहं ॥७॥ अगलूहां वे धरमनांजी, आत्मस्वभाव जे अंग; जे आभरण पहेरावीएजी, ते स्वभाव निज संग. मुह मे नववाड विशुद्धताजी, ते पूजा नव अंग; पंचाचार विशुद्धताजी, तेह फूल पंचरंग. मुहं ॥९॥ दीवो करतां चिंतवोजी, ज्ञानदीप सुप्रकाश; For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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