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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चालि. रतनमांहि सारो हीरो नीरोगी नरमाहि, शीतळमाहिं उसीरो, धीरो व्रत धरमाहि; तिम सर्व मंत्रमा भाष्यो श्री नवकार, कह्या न जायेरे एहना, जे छे बहु उपकार ॥१२६ ॥ दुहा. तजे ए सार नवकार मंत्र, जे अवर मंत्र सेवे स्वतंत्र; कर्म प्रतिकूल बहुल सेवे, तेह सुरतरु त्यजी आप टेवे. ॥१२७॥ चालि. एहने बीजेरे वासित होई, उपासित मंत, बीजो पणि फळदायक, नायक छे ए तंत; अमृत उदधि फु सारासारा हरत विकार, विषना ते गुण अमृतनो, पवननो नहींरे लगार. ।। १२८॥ दुहा. जेह निर्षीज ते मंत्र जूठा, फळे नहीं साहमुंहुइ अपुठा; जेह महामंत्र नवकार साधे, तेह दोए लोक अलवे आराधे.॥१२॥ चालि. रतनतणी जिम पेटी भार अल्प बहु मूल, चौद पूरवनुं सार छे मंत्र ए तेहने तूल्ल; सकल समय अभ्यंतर ए पद पंच प्रमाण, महमुअखंध ते जाणो, चूला सहित सुजाण. ॥१३० ॥ . दुहा. पंच परमेष्ठि गुण गण प्रतीता, जिन चिदानंद मोजे उदीता; श्री यशोविजयवाचक प्रणीता, तेह ए सार परमेष्ठी गीता. इति श्री पंचपरमेष्ठि गुणवर्णन गीता समाप्ता. For Private And Personal Use Only
SR No.008539
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages308
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size12 MB
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