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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ नासे अशुद्ध परिणति वेगळी, भेदभाव सकल दूर जाय. जै० ॥६॥ गुरु विनये ज्ञानने पामीए, श्रद्धा भक्तिथी उदार; बुद्धिसागर सद्गुरु सेवतां, होवे जिनशासन जयकार. जै० ॥७॥ धर्मोपदेश गुंहली. सनेही वीरजीजय कारीरे-ए राग. बनी सद्गुरु वाणी सारीरे, साकरथी पण बहु प्यारीरे; कर्या कर्म सहु हरनारी, जिनेश्वर धर्मनी बलिहारीरे; जेथी तरतां नरने नारी. जिनेश्वर० ॥ १ ॥ दया धर्म हृदयमां धरीएरे, कदी वेंण जूटुं न उच्चरीएरे; कदी चोरी परनी न करीए. जिनेश्वर० || २ || पर पुरुषथी प्रेम निवारोरे, धर्म पतिव्रता मन धारोरे; तेथी पामो भवजल पारो. For Private And Personal Use Only जिनेश्वर० ॥ ३ ॥ हेतु पूर्वक धर्म आदरीएरे, निंदा विकथा परिहरीएरे; उत्तम नीति संचरीए.. धर्म अर्थने काम विचारीरे, करो मोक्ष जवानी तैयारीरे; धर्मे झट मुक्ति नारी, जिनेश्वर० || ५ || दुर्जननी संग निवारीरे, भजो सज्जननी संग सारीरे; 'वैराग्यदशा चित्तधारी. देश विरतिपणुं दिलधारीरे, जिन आज्ञाना अनुसारीरे; उत्तम जन शिव संचारी. जिनेश्वर० ॥ ६ ॥ जिनेश्वर० || ७ || गुरु सेवी सदा उपकारीरे, श्रद्धा भक्ति अवधारीरे; बुद्धिसागर गुरु जयकारी. जिनेश्वर० ॥ ४ ॥ जिनेश्वर० || ८ ||
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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