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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महा मोहमल्ल दुःख आपतो, चेतो चेतो झट नरनार. बेनो. ॥४॥ माया ममता दारु घेनमा, नहि मुज्युं आतम भान; आशा वेश्या करमाहि चन्यो, कर्मे थइयो अति नादान. बेनो. ॥५॥ लाख चोराशी भमतां थकां, पामी मनुष्यनो अवतार; चेतो चेतो ह्रदयमा माणिया, गुरु कहेता वारंवार. बेनो. ॥६॥ गुरु वस्तु धर्म बतावता, तेनो आदर करवो सार; जाणी धर्म आचारमा मूकवो, सत्यधर्म करी निर्धार. बेनो. ॥७॥ निंदा विकथादिक परिहरी, सेवो उत्तम धर्माचार; बुद्धिसागर सद्गुरु वंदीए, गुरु तारे अने तरनार. बेनो. ॥८॥ जैनधर्म गुंहली. राग उपरनो. जैन धर्म हृदयमा धारीए, जेथी नासे भवभय दुःख थावे निर्मल आतम धर्मथी, पामे चेतन शाश्वत सुख. जे ॥१॥ भेद छेद आतमना ज्ञानथी, शुद्ध चेतन ऋद्धि पमाय; होवे आतम ते परमातमा, भवोभवनी भावट जाय. जै० ॥२॥ ज्ञान दर्शन चरणनी साधना, साधु श्रावकना आचार; सागर सरखा जैन धर्ममां, सर्व दर्शन नदी अवतार. जै० ॥३॥ समुद्रमा सरिता सहु मळे, नदीमांहि भजनाधार; अंतरंग बहिरंग उच्च छे, जिन दर्शन जग जयकार. जै० ॥४॥ सापेक्ष वचन जिननां सहु, षड्व्य ना धर्म अनंत; एक चेतन द्रव्य उपासीए, एम भाखे छे भगवंत. जै० ॥५॥ वीतराग सेवे वीतरागता, निजं चेतननी प्रगटाय; For Private And Personal Use Only
SR No.008538
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1909
Total Pages218
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size11 MB
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