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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३०२ राग केदारी. वचन थकी गावो चेतनने, शाणा नरने नारीरे; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वचन भक्ति बहु पाप हरे छे, शिव मन्दिरनी बारीरे वचन ॥१॥ वचन भक्ति शक्ति प्रगटावे, अतिशय आनन्द थावेरे; शुद्ध प्रेमधी गावो चेतन, परम प्रभु परखावेरे. वचन. ।। २ ।। शुद्ध स्वरूपने क्षण क्षण गावो, वचन थकी ए बधावोरे; वचन भक्तिथी मननी स्थिरता, युक्ति एचित्त ठरावोरे. वचन. ॥३॥ वचन थकी गातां चेतनने, पर परिणमता नासेरे; परापश्यन्ती मध्यमा वैखरी, भाषा शक्ति प्रकाशेरें. वचन ॥ ४॥ नाद योगमां वचन भक्तिथी, सहेजे प्रवेश सुहावेर; अनहद तूर वजावे योगी, सूक्ष्म वचनना भावेरे. चेतन गातां स्थिरता होवे, मोहमायादि विघटेरे; देह तंबु वचनना खरथी, अनहद तानज प्रकटेरे. वचन. ६ ॥ वचन योगी होवे मन योगी, अंते थाय अयोगीरे; बुद्धिसागर वचन भक्तिथी, परम प्रभुता भोगीरे. वचन ॥ ७ ॥ वचन. ।। ५ ।। अथ पंचमी वन्दनक्रिया. दुहा. शुद्ध चैतन्य स्वभावने, वन्दो वारंवार ज्ञानादिक आधारथी, चेतन पूज्य विचार. निज सरखा सहु जीवने, जाणी हर्षित होय; जाणी सिद्धसम जीवने, वन्दे भावे जोय. सिद्ध जगत् शिर शोभता - ए राग. इन्दु चेतन द्रव्यने, पुद्गल द्रव्यथी भिन्न; आनंदघन प्रभुप्रेममां, स्थिरोपयोगे हुं लीन. अर्हन्तादिक पंच जे, वंदन शुभ व्यवहार; अर्हन्तादिक रूप छे, जीव ते निश्चय धार. For Private And Personal Use Only १ ॥ ॥ २ ॥ बंदु. ।। १ ।। बंदु ॥ २ ॥
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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