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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० सेवो चेतन द्रव्य, साचु एह कर्तव्यरे. भ० ॥१॥ पंच परमेष्ठिनी सेवनारे, तेना अनेक छे भेद; "जिन आणाथी सेवनारे, करतां नासे खेदरे. भ० ॥२॥ देव गुरु ने धर्मनीरे, निश्चय ने व्यवहार; सेवा करतां प्राणियारे, भवजलधि तरनाररे. भ० ॥ ३ ॥ उपादान निमित्त छेरे, सेवन मुख भरपूर सात नयोथी सेवतां रे, वाजे मंगल तूररे. भ०॥ ४ उपादेय चेतन प्रभुरे, सत्य सेवन परमार्थः । निज सेवन वण जाणजोर, बाकी सहु बाह्यार्थरे. भ० ॥५॥ वार अनंति सेवीयां रे, पुद्गल द्रव्य अनंत; तृप्ति न पाम्यो जीवडार, आव्यो नहि भवअंतरे. भ० ॥ ६॥ जड पुद्गल धन देहनीरे, सेवा दुःख देनार; निज जाति शुद्ध द्रव्यनीरे, सेवा मुख करनाररं. भ० ॥७॥ अनंतगुण पर्यायीरे, जीव द्रव्य जयकार; पदकारक शुद्ध जीवमारे, निजगुण कर्ता धारर. भ० ॥८॥ अवली परिणति परिणम्यां रे, षट्कारक जीवमाहि; काल अनादिथी जाणीने रे, कीजे उद्यम उत्साहरे. भ० ॥९॥ भेदज्ञानथी भावीयरे, स्थिर चित्ते करो सेवा जीव सेवे सहु सेवीयुरे, आनंद अनुभव मेवरे. भ० ॥१०॥ शुद्ध परिणति शक्तिथीरे, सेवो आपो आप; बुद्धिसागर सेवनारे, मुक्तिपुरीनी छापरे. भ० ॥ ११ ॥ अथ चतुर्थी वचनक्रिया स्वाध्याय. आत्मप मनमां धरी, वचन भक्तिकर जीव; वचन भक्ति महिमा वडो, थावे जीवनो शिव. ॥१॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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