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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चेत चेत अरे जीवडा, सत्य धर्मनुं टाणुं; बुद्धिसागर धर्मनुं, एक शरणुं मजानु माया. ॥ ३ ॥ अन्तर्वृत्ति स्वाध्याय. श्रीर सिद्धाचल भेटवा-पराग. शुद्ध रमणता आदरो, थाओ निजगुण भोगी; बाह्यदशा चित्त वारीने, थाओ सहजोपयोगी. शुद्ध. ॥१॥ परमानंद स्वभाव छे, शुद्ध चेतन द्रव्य; सोहं सोहं ध्यानथी, सेवना कर भव्य. शुद्ध. ॥ २॥ नवधा भक्ति जे आत्मनी, करशे ते तरशे; रत्नत्रयीनी लक्ष्मीने, वेगे ते हि वरशे. शुद्ध. ॥३॥ निश्चय भावदशा भजी, चेतन थाय मुखी; अनुभवामृत पीवतां, कदी थाय न दुःखी. शुद्ध. ॥ ४ ॥ बाह्यदशा व्यवहारथी, भटके जीव भारी; अप्रमत्त दशा विना, जाय उम्मर हारी. शुद्ध. ॥ ५ ॥ शाब्दिक तार्किक पंडितो, बाह्यझघडे राता; चउद पूर्वी प्रमादथी, भवोभव भटकाता. शुद्ध. ॥ ६ ॥ शुद्ध रमणता प्रीतडी, निश्चय सत्य मानी; बुद्धिसागर बोधथी, वात कोइ न छानी. शुद्ध. ॥७॥ ~~~- - ~कपटमाहमा. गजल. कपटना फंद छ काळा, कपटना चित्र छे चाला; कपटथी कर्म छ कुडं, कपटथी थाय नहि रुटुं. ॥१॥ कपटमा कर्मना दरिया, कपटथी कोइ नहि ठरिया; For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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