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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देहस्थआत्मानी परमात्मावस्थानुं भान. गजल. अहो आ देहमां देखो, चेतनजी ज्ञान धन पेखो; अरुपी तत्व छे पोते, अरे तुं वाद्य क्यां गोते. ॥१॥ अनंति शक्तिनो स्वामी, निःसंगी शुद्ध निष्कामी; सहु देखे सहु जाणे, अनंतां सुख दील माणे. ॥२॥ परमब्रह्म स्वयं शुद्ध, परमयोगी परम बुद्ध परमध्याता परमध्येय, परम ज्ञाता परम ज्ञेय. परमयोगी परमभोगी, विगतशोकी विगतरोगी; अखंडानंद अविनाशी, परम पद शुद्ध विश्वासी. ॥४॥ परमभ्राता परम त्राता, परम नेता परम दाता; परानो पार जे पावे, योगीश्वर चित्तमां ध्यावे. ॥५॥ प्रकाशे सर्वने तेजे, रमे जे ब्रह्ममां स्हेजे; अनित्य नित्य छे हीरो, रमे छे ध्यानमां धीरो. ॥६॥ प्रकाशे पिंडमां पोते, अनंती ज्ञाननी ज्योते; बुद्धयब्धि ध्यान पोतार्नु, करीने देखीए भानु. ॥७॥ समय शिक्षाना उद्गार. गझल. जगत्ने रहेमथी देखो, जगत्ने प्रेमथी पेखी; जगत्मां देखवा ग्रन्थो, जगत्मां धर्मना पन्थो. ॥१॥ जगत्मां जाणवू सारु, जगत्मा त्यागवु खारु; जगत्मां सत्य शोधी ले, जगत्मां सत्य बोधी ले. ॥२॥ जगत्मां दान देवानु, जगत्मां ज्ञान लेवानें; जगत्मां सत्यनु बारु, जगत्मां मोह अंधारु. ॥३॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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