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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ जगतमां प्रेम छे खोटो, प्रभुमां प्रेम छे मोटो; बुद्धयन्धि प्रेम परखी ले, हृदयमां भव्य हरखी ले. ॥१०॥ सामान्य हितबोध. गजल. विचारी वातने वोलो, विवेके सत्यने तोलो; लघुता दिलमां धारो, अहंता दीलथी वारा. गुरुगम ज्ञानने लीजे, भलामां दील दीजे; गुरुमां प्रेमथी भक्ति, गुरुनी भक्तिथी शक्ति. ॥२॥ गुरुना वाक्यने पाळो, थता दोषो सहु टाळो; कपटना फन्दने त्यागो, सदानिज आत्ममां जागो. ॥ ३ ॥ गणो सरखा सहु जीवो, करोने ज्ञान घट दीवो; दया दाने बनो सारा, प्रभु प्रेमे बनो प्यारा. ॥४॥ बुरामा चित्त ना देवं, सदा सुख शान्तिमा रहे; उपाधियी रही न्यारा, भजोने ब्रह्मने प्यारा. ॥५॥ सदानंद जीवन गाळो, चेतनना श्यानमां म्हालो; प्रभुनी भक्तिमां रीझो, कटु वेणे नहीं खीजो. करो संगत शूरानी, तजो संगत अधुरानी; अहो ज्ञानी सदा शुरो, अहो पापी सदा बूरो. ॥ ७ ॥ सदा तत्त्वे रहो राची, गणी माया महा काची; करुणा जीवपर करवी, समाधि शान्तता वरवी. ॥८॥ कदापि क्लेश ना करचो, कदापि क्रोध ना धरवो; बुद्धयन्धि तत्त्वमां मेवा, अमारे ज्ञाननी सेवा. ॥९॥ For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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