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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ९४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 11:40 11 ।। ६१ ।। भव्य एवा सेवीने, पामे अविचल धाम. दढ शक्ति एह नामथी, भजता भवियण कोय; तेह सिद्धाचल बंदीए, समकित निर्मल होय. ॥ ५८ ॥ अचल ज्योतिना नामथी, शेवो शुद्ध सदाय, तेह सिद्धाचल बंदीए, भवभय भ्रांति जाय. सार्थक सहजानंद ए, नामे गिरिवर होय; सेवो ध्यावो भविजना, भवपातिकतति खोय ॥ ६० ॥ काल अनादि भटकियो, तोय न आव्यो अंतः शत्रुंजय रुषभ प्रभु, तार तार भगवंत. एकेंद्रिय बेरेंद्रिमां दर्शन कबहु न थायः तेरेंद्र चौरेंद्रियां, नजरे नहीं जणाय. प्रबल पुण्योदय थकी, लही मानव भवसार; श्री आदीश्वर भेटीया, तार तार मुज तीरे ॥ ६३ ॥ शिवशंकर गिरि देखीने, पामो मन आनंदः शुद्ध स्वरूपानंदता, जस ध्याने उल्लसंत. जग तारे एह हेतुथी, जगतारण कहेवाय; ते सिद्धाचल बंदीए, निर्मल आत्म सुहाय गुणानंत प्रगटे मुदा, जस ध्याने निजमांय; गुणकंद गिरिवर तणी, सेवा शितल छांय. आर्त ध्याननी नष्टता, गिरिवर ध्याने थाय; रौद्रध्यानी पण सिद्धता, शत्रुंजय महिमाय ॥ ६७ ॥ पुंडरीक गणधरमुखा, आव्या विमल गिरिंद; ते विमलाचल बंदीए, प्रणमतसज्जनवृन्द. सेवे शिव सुख संपदा, व्यावे ध्येय पमाय; नमुं नमुं हुं तीर्थने, मुक्तानंद कथाय. ।। ६६ ।। ॥ ६८ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ ५९ ॥ ॥ ६२ ॥ ॥ ६४ ॥ ॥ ६५ ॥ ॥ ६९ ॥
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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