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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्यजी प्रभुता वाह्यनी, आदश्विर जिनआण; धारी गिरि र वंदीए, वंदन होय प्रमाण. ॥ ४५ ॥ माया तृष्णा परिहरी, शरण ग्रही जिन आण; श्री सिद्धाचल वंदीए, प्राप्ति पद निर्वाण. ॥४६ ।। तन मन धन ममता त्यजी, भज समता घटमांय; भोव गिरिने बंदतां, लहीए नहि दुःख क्यांय. ॥ ४७ ॥ पुण्यराशि शुभ भावथी, मणि कंचन गिरिराय; शुद्ध भावथी सेवीए, अनेकांत मत पाय. ॥ ४८ ।। तारक वारक चउगति, अचल महोदय नाम: ते सिद्धाचल वंदीए, ठरीए निजपद ठाम. ॥ ४९ ॥ जग जयवंतु तीर्थ ए, सहु तीर्थ शिरदार; भव्यो भाळे भावी, पामे भवजल पार. ॥१०॥ शांत स्वभावे निर्मला, मुनिवर ए गिरि पाय%; अलख अमरपद पामीया, शुद्ध परिणति ध्याय. ॥५१॥ प्रदेश शत्रु जयतणा, नयनानंद करत; विश्वपूज्य गिरि वंदीए, लहीए भवजल अंत. ॥५२॥ राम भरत ज्यां आविया, महिमा सुणी अपार; गिरिसेवन गिरूआ थइ, लया सद्गति निरधार. ५३ पांडव प्रमुखा ए गिरि, आव्या मन उल्लास; भावे गिरिवर सेवतां, मुक्तिपुरीमां वास. ॥५४॥ सर्वज्ञ पद साधीयुं, संब प्रद्युम्नकुमार; ते सिद्धाचल वंदीए, नाशे कर्मविकार. ॥५५॥ संप्रति काळे आवीया, विशे जिनराय; तेवीश विषय शमाववा, भजीए गिरिवर राय. ।। ५६ ॥ जिनाज्ञा जिनतत्त्वनी, करणी कहे निष्काम; For Private And Personal Use Only
SR No.008537
Book TitleBhajanpad Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherAdhyatma Gyan Prasarak Mandal
Publication Year1908
Total Pages330
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size13 MB
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