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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir :- हरियाली -: वरसे कांबल भीजे पाणी : ___ कंबल अर्थात् इन्द्रियें बरसती है, पानी याने जीव कर्म से भारी होता है। अर्थात् इंद्रिय रुपी कंबल के बरसने पर जीव रुपी प्राणी कर्म-जल से भीगता है। मांछलीए बगा लीधो ताणी : मच्छी याने लोभ और बगुला याने जीव । मच्छी ने बगुले को खींच लिया अर्थात् लोभ ने जीव को संसार में खींच लिया। उडेरे आंबा कोयल मोरी : __ उडे याने सावधान रहे, आम याने जीव, कोयल याने तृष्णा, मोरी याने विस्तार। तृष्णा के बढ़ने पर जीव को सावधान रहना चाहिये। कलीय सींचतां फलोअ बीजोरी ॥१॥: कली याने माया, बीजोरा याने लोभ, खेद । माया रूपी कली को सींचने पर लोभ, खेद, रूपी बीजोरा का वृक्ष फला पूला । ढांकणीए कुंभार जघडीयो : ढक्कन याने माया, कुम्हार याने जीव । ढक्कन ने कुम्हार को बनाया अर्थात् माया ने जीव को संसार में भटकाया। लगडा उपर गादह चढ़ीओ : लगड़ा याने राग द्वेष अभिमान, गादह याने जीव । अर्थात् राग द्वेष अभिमान ने जीव को अपने वश में कर लिया। For Private And Personal Use Only
SR No.008508
Book TitleAdhyatmik Hariyali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherNarpatsinh Lodha
Publication Year1955
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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