SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २० ) ।।४।। जिसकी सेवा, महिमा से बहुत बुद्धि प्राप्त हो, सुधनहर्ष पंडित पूछते हैं कि वह कौन है ।५।। हरियालो ७ धवल सेठ निज नगर थी, जस मंदिर आवे । ते तेहने रहेवा भणी, घर एक करावे ॥१॥धवल०॥ चतुर ते चार दिशे थकी, आवे घर माहि । श्रवणे घूघर घमकता, सांभलतां प्राहि ॥२॥धवल०॥ तेहने अहीं आव्या पछी, बहु संतति होवे । ते तिहां इतो एकलो, पण कण जइ जोवे ॥३॥धवल०॥ निज वर्णे दूरे कर्यो, तस चोथो परिओ। कहो पंडित ते स्याभणी, जे बलनो दरियो ॥४॥धवल०।। चोथे परिएं तेहने, घणुं वाध्यं मूल । जे सेवतां सर्व ने, बल होय असूल ॥५॥धवल०॥ धनहर्ष पंडित इम भणे, कहो तेहन नाम । प्राहि सर्व मनुष्य ने, जे साथे काम ॥६॥धवल०॥ हिंदी शब्दार्थ : धवल सेठ अपने नगर से जिसके मंदिर में आता है, वह उसके रहने के लिये एक मंदिर बनवाती है ॥१॥ वह चतुर चारों दिशाओं से घर में आता है। उसके कान में धुंधरु घमक रहे हैं, जो सुनाई देते है ॥२।। यहाँ आने के बाद उसे बहुत संतान होती है । वहाँ वह अकेला था, पर कौन जाकर देखता था ।।३।। अपने वर्ण को दूर किया, यह चौथा परिचय है, कहिये पंडित ! वह किस कारण से बल का समुद्र For Private And Personal Use Only
SR No.008508
Book TitleAdhyatmik Hariyali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBuddhisagar
PublisherNarpatsinh Lodha
Publication Year1955
Total Pages87
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy