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________________ ( ११६ ) મધ્યમાં પૂર્વે પિલિપિછી, દક્ષિણે જમ્બા, પશ્ચિમે કદા અને ઉત્તરે અમા એક બ્રાહ્મ આઠ દેવીએ વાસ્તુપદમાં વસેલી છે. ૨૮૨-૮૩-૮૪-૮૫ पूर्व कामे अंधकासुर दैत्यके साथ युद्ध करते वकत रुद्रके ललाटसे पसीनेका बिन्दु पृथ्वी पर गीर पढा उससे एक आश्चर्यकारक अति दु:सह, कुर पुरुष पैदा हुआ । सिसे सब देवोंने उसे पकड़ा और खुलाया | उसकी दोनो जंघा, घुटने, पैर नैऋत्य दिशामें और मस्तक ईशान कोने में रहे । उसकी देह पर पैंतालीस देव बैठे हुए हैं । उसमें से आठ देव आठ दिशामें रहे हैं । देवाने उस पर बसेरा किया सिलिये वह 'वास्तु पुरुष' कहलाया | प्रासाद और भवन आदि वास्तु कार्य के प्रारंभ में, समाप्ति के वकत और अन्य कामोंमें वास्तु पुरुषका पूजन अवश्य करें | जिससे सुख प्राप्त होता है । (नोट:- जिस वास्तुपुरुषके अंगके मर्मस्थानों पर स्तंभ पाटके दीवार न आने दें वैसा आगे बताया गया है ). वास्तुके पद विभाग पृथक पृथक कहे हैं । उसमें विशेष करके ७७ = ४९ पदका मरिचि वास्तु जिर्णोद्वारके प्रसंग पर पूजें । ८x८=६४ पदका भद्रक वास्तु नगर, ग्राम, जलाशय और राजभवन में पूजें । ९x९= ८१ पदका कामद वास्तु सामान्य घरांमें पूजे । १०x१०= १०० पदका भद्राख्य वास्तु प्रासाद मंडप में पूजे । और हजार पदका सर्वतो भद्र वास्तु मेरु प्रासादको स्थापनमें पूजें । एकाशी पदके वास्तु मंडलमें मध्यके नवपद ब्रह्मा, उससे चारों दिशाओंमें छछ पदके, पूर्व में अर्यमा, दक्षिण वैवस्तव, पश्चिममें मैत्रगण और उत्तर पृथ्वीवर यह चार देव छछ पदके हैं । देव देवियों में ईशानमें आप आपवास । अग्नि कोन में सवित्री और सविता, नैऋत्य कोनेमे इन्द्र और जयंत और वायव्य कोने में रुद्र और रुद्रदास स्थापन हुए हैं । और उसकी चारों ओर देवोमे' पूर्व से इर्श पर्जन्य, जयद्र सूर्य, सत्य, भृश और आकाश, दक्षिण अग्नि, पुषा, वितथ, गहथत, यम, गंधर्व भृंगराज और मृग
SR No.008436
Book TitleVedhvastu Prabhakara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages194
LanguageGujarati, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Art
File Size5 MB
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