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________________ ( ६३ ) दिग्मुख या पदलोप या गर्भलोप करनेसे स्वामी और शिल्पि दोनोंका वास होता हैं और स्वामिकी लक्ष्मीका नाश होता है । १३८ थरभंगो यदायस्य कोपिता स्वत्र देवताः । शिल्पिनो च क्षयं यान्ति तद्भवेत् स्वामि मृत्युदम् ||१३९|| निर्दोषवास्तु દેવાલયમાં પાષણ કે ઈંટના કામમાં થરનેા ભંગ થાય તે તેમાં રહેનારા દેવતા કાપિત થાય છે અને શિલ્પીના નાશ થઈ સ્વામિનુ મૃત્યુ થાય છે. ૧૩૯ देवालय में पाषाण या ईंटोके थरका भंग हो तो रहनेवाले देवता कोपित होता है. शिल्पका नाश होता है और स्वाभिकी मृत्यु होती है । १३९ विषम पदस्तुलस्तंभ' पादभित्ति नष्टकम् । क्रम पद चलिते यश्च न शुभं कर्तुकारकम् || १४० || अपराजितसूत्र કાટખૂણે પદ ન હોય તેવા પદ કે પાટડા કે એકી સ્ત ંભ હોય કે નીચે लींत पाया वगरनी होय............... તા તે તે કર્તા–કરાવનારનું અશુભ થાય છે. ૧૪૦ चोरसाई में विषम पद हो एसे पद या धरन (बीम- पाट) हो, एकी स्तंभ हो या नीचे दीवारकों नींम न हो.. तो स्वामीका अशुभ होता है । ( वापि मंडप या मकाननेसे जीनने तीन स्तंभ एकी स्तंभ ) नही रखना भिति स्तंभ और सीडी यमोक्ष न करना । १४० त्रिविभक्त' तुल्यराशि द्विशेष ं नैव कारयेत् । विशेष एकशेष च तदादृद्धिमवाप्नुयात् || १४१|| परिमाणमज्जरी ॥ પીઢીયાં (પગથીયા) જેટલી સંખ્યા હોય તેને ત્રણે ભાગતાં જો શેષ . એ રહે તે તે શુભ ન જાણવું. પરંતુ શૂન્ય રહે અથવા એક શેષ વધે તે, તે સવ સુખની વૃદ્ધિદાયક જાણવુ', ૧૪૧ तुला राशि ( पीढीयां पगथी ) के तीनसे बांटनेसे द्वि शेष रहे तो शुभ नही है । किन्तु शुन्य या एक शेष रहे तो सर्व सुखांकी वृद्धि करनेवाला समझना । ( इससे पीढीया पगथी कम या ज्यादा करगा ) १४१.
SR No.008436
Book TitleVedhvastu Prabhakara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year1965
Total Pages194
LanguageGujarati, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati & Art
File Size5 MB
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