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________________ २८९ विधान तो नथी अने प्राकृत साहित्यमा ए प्रक्रियानां रूपाख्यानो उपलब्ध थाय छे एथी कल्पी शकाय छे के, ते ते प्रक्रियाना(संस्कृत) सिद्ध रूपोमां, आगळ जणावेल वर्णविकारना नियमानुसार फेरफार करी ते रूपोनो प्रयोग करवामां आवे (ल) छे. जेमकेसंस्कृत प्राकृत शुश्रूषति सुस्सूसइ । (सन्नंत) लालप्यते---- लालप्पइ । ( यङत) चंकमइ । ( यङ्ग्लुबंत) चक्रमीति चकमण । (चक्रमणम् ) इत्यादि । मात्र नामधातु माटे विशेषता आ छे : नामधातुओने लागेल । य' प्रत्ययनो लोप विकल्पे थाय छे. गुरुकायते--गरुआइ, गरुआअइ (गुरुरिव आचरति-गुरुनी जेवू आचरण करे छे) दमदमायते-दमदमाइ दमदमाअइ ( दम दम थाय छे) लोहितायते- लोहिआए-ई, लोहिआअए-इ। (लाल थाय छे) हसायते-- हसाए-इ, हंसाअए,-इ। (हंसनी जेम आचरे छे) तमायते- तमाए-इ, तमाअए-ई । (अंघारा जेवु छे) अप्सरायते-- अच्छराए,-इ, अच्छराअए-इ। (अप्सरानी जेम आचरे छे) उन्मनायते- उम्मणाए-इ, उम्मणाअए, इ (उन्मना थाय छे) कष्टायते- कट्ठाए,-३, कट्ठाअए,-ई। (कष्टने माटे क्रमण करे छे) प्रा० ३७
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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