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________________ २४७ उड्डी-उडेइ (उड्डयते) उठेति ( उड्डयन्ते) जि-जेऊण (जित्वा) नी-नेऊण (नीत्वा) केटलाक धातुना उपांत्य स्वरनो दीर्घ थाय छेः रुष्-रूस्-रूस-रूसइ ( रुप्यति ) तुष्--तूस-तूस-तूसइ (तुष्यति) शुष्-सूस्-सूस-सूसइ (शुष्यति ) दुष्-दूस्-दूस-दूसइ (दुप्यति ) पुष्-पूस्-पृस-पूसइ (पुष्यति ) सीसइ (शिष्यते) इत्यादि । ८ धातुना नियत स्वरने स्थाने प्रयोगानुसारे बीजो स्वर पण थाय छः वि०-हवइ-हिवइ ( भवति) चिणइ-चुणइ (चिनोति) सहहणं-सदहाणं (श्रद्धानम् ) धावइ-धुवइ (धावति) रुवइ-रोवइ (रोदीति) इत्यादि । निक-दा-दे-देई (ददाति, दाति, धति) ला-ले-लेइ. ( लाति) विहा-विहे--विहेइ (विदधाति, विभाति.) बृ-वे-वेमि (ब्रवीमि ) इत्यादि । ९ केटलाक धातुओनो अंत्य व्यंजन प्रयोगानुसारे बेवडो थाय छ। वि०-फुडइ, फुटइ ( स्फुटति) चलइ, बल्लइ (चलति)
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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