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________________ अन्याश एह । ईदृश अपभ्रंश-आदेशो , (१) नीचे जणावेला शब्दोनों अपभ्रंश रूपो आ प्रमाणे छः अन्यादृश ('अन्नादि (इ) स ) अन्नाइस । अवराइस । ३दृक् (ईदि (इ) स) अइस । कीहक् कीदृश (कीदि (इ) स) कइस । ताइक् . . . ... ... . तेह ।। तादृश . ( तादि (३):सः), तइस ।। यादृक् यादृश . (जादि (इ) स ) मइस । वर्म विच। विषण्ण बुन्न । अपभ्रंशनां उमेरणो . (१) अपभ्रंशमा कोइ कोइ शब्दमां कोई कोई अक्षरनो वधारा तरीके उमेरो थइ जाय छे:-- उक्तम् उस वुत्तं (व' नो वधारो) परस्परं परोप्परं अपरोप्परं .. ('अ' नो वधारो) व्यासः . वासो बासु, वासु (र' नो वधारो ): जेह । - १ आ ( ) काउंसमां आपेलां रूपो अपभ्रंशरूपोनी पूर्वाधा स्थाना सूचक छे, आ शठदोनों प्राकृतरूपा जोषा माटे जूओ पृ० ५८ ऋ-रि पृ० ५९ ऋ-इ। . . . . . . . . . . . . : .. __ २ जेम 'अन्य' शब्दनु अन्याश' रुप थाय छे तेम आ ' अवराइस ' शब्द जोतां तेना मूळरूप तरीके ' अपरादृश' रूप पण कल्पी शकाय।
SR No.008425
Book TitlePrakrit Vyakarana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGujarat Puratattva Mandir Ahmedabad
Publication Year1925
Total Pages456
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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