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________________ अथ चतुर्मुख महाप्रासाद स्वरूपाध्याय करना। की देवांगनाओंका दाहिना पाँव कमल जैसा, दूसरी विधिसे बाँया अंग बताती हुई देवांगना करना । जिसका हाथ नीचे बांओं तरफ ढलता मृत्य करता करना । दक्षिण दिशामें यमः धर्मराजको निरीक्षण करते करना । नैऋत्य कोणमें क्षेत्रपाल (भैख-नीरूति) के स्वरूपों करना । यक्ष और गणोंके रूपों भी करना !........श्रेष्ठ (ऊँची) ऐसी उत्तान देवांगना नृत्य करती करना। पश्चिम दिशामें वरूगदेवका स्वरूप करना। देवांगनाओंमें से कितनीका दाहिना हाथ मस्तक पर करना । नीचे दृष्टि रखी हुई और बाँया हाथ वक्ष पर रखी हुई नृत्य करती करना । ८७-८८-८९-९०. वायव्ये वैतालका वक्ष्ये पुनस्तांडव्य ताङ्गतः ॥११॥ भ्रमरीयं च विशेषेण वस्त्रहस्तं विशेषतः। कुबेरे पद्मिनीलिला गण इंद्रादि कोत्तमा ॥१२॥ ग्रतांश्चान्ये दक्षहस्ते करैकं शिरभूषिता । इशाने इश्वरंश्चैव भुजाष्टक संयुतः ॥९॥ अभय प्रीतमुक्तिर्ग (?) वामहस्ते कारण (!)।' વાયવ્ય કોણમાં (વાયુદેવ કે) વૈતાલનું સ્વરૂપ કરવાનું કહ્યું છે–તે વિષ કરીને ભમરી ફરતા તાંડવ નૃત્ય કરતું હાથમાં વસ્ત્ર ધારણ કરેલ કરવું કરવામાં કુબેરની સાથે પદ્મિની દેવાંગને લીલા કરતી ગણુ ઇંદ્રાદિ એવાં ઉત્તમ સ્વ શેભનાં કરવાં. પદ્મિનીને નૃત્ય ગતિમાં નીચે જમણે પગ એક હાથ શિરપર ભત રાખે. ઈશાન કેણમાં ઈશનું સ્વરૂપ આઠ ભુજાવાળું અજયદિ ગુજાपाणु भने सो डाय......"८१-८२-८3. वायव्य कोणमें (वायुदेव या) वैतालका स्वरूप करनेका कहा है । उसे विशेषकर भमरीके चारों तरफ तांडव नृत्य करता हाथमें वस्त्र धारण किया हुआ करना । उत्तरमें कुबेरकी साथ पद्मिनी लीला करते गण इंद्रादि ऐसे उत्तम स्वरूपों सुंदर शोभता करना । पद्मिनी नृत्य गतिमें नीचे पाउ दाहिना एक हाथ शिर (૩) ગુજરાત સૌરાષ્ટ્રની ઘણી ખરી ક્ષીરાવની પ્રતો અહીં શ્લોક ૯૩ પછી સમાપ્ત થાય છે. આગળ નથી. પરંતુ અમારા સંગ્રહની એક પ્રભાં અને આજ અધ્યાય વૃક્ષાર્ણવમાં સંપૂર્ણ મળતો હોવાથી અપૂર્ણતા દૂર કરી શકાઈ છે. એ સભાગ્ય. (३) गुजरात सौराष्ट्रकी बहुत कुछ क्षीरार्णवकी प्रतें यहाँ श्लोक ९३ के बाद समाप्त होती है। आगे नहीं है। परंतु हमारे संग्रहकी एक प्रतमें और यही अध्याय वृक्षार्णवमें संपूर्ण मिलनेसे-अपूर्ण दूर हो सकी है। यह सद्भाग्य ! Z तिलोसमा (कामरुपा) तिलोचना ।
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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