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________________ क्षोराणघ अ.-१२० क्रमांक अ.-२२ पाँठ करना । जिनायतन की फिरती पंक्ति में कोने पर और बिच में कक्षमै छः त्यों फिरने करना । ( उसे महाधर कहते हैं । ) भद्रस्य कोष्टकं वक्ष्ये मुखभद्रे त्रीणिभवेत् । तत्स्थाने वेदिका रम्या सुभद्रा सर्वकामदा ॥४१॥ ॥ इति किरणावली ॥ ભદ્રના કઠાનું કહું છું. મુખ ભદ્રને ત્રણે સ્થાને રમ્ય એવી વેદિકા-સુભદ્રા સર્વ કામનાને દેનારી કરવી તે કિરણુવલી જાણવી. ૪૧. इति किरणावली-भद्रके कोठेके बारे में कहता हूँ। मुख भद्रके तीनों स्थान पर रम्य ऐसी वेदिका सुभद्रा सर्व कामनाको देनेवाली करना । उसे किरणावली जानना । ४१. कीरणावली-सौभाग्यानी कीरणाउली मंडप-मुख मंडप वेदिका कक्षासन युक्त और निम्न नाली मंडप करनेसे सौभाग्यानि नाम पंदरा विभागका ९६ स्तम्भका मंडप नाम कीरावली. चंदरा विभागका. मुखमध्यपदिका मान '९६समकामगर वायुस्लोनीन नानि Iो सोमायानी +नाम होताहे.
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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