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________________ अथ पतुर्मुख महाप्रासाद स्वरुपाध्याय २८५ (મુખ!) થાય તે પાંચને મેઘનાદ મંડપ કરવા. તેને નીચે સિંહ દ્વારે नासि (४५) तेना ७५२ पाय 3 नव ५६ भद्रनो An (भ७५).... २६-२७-२८-२८-30 भावार्थ-बावन जिनायतनके भद्र भाग......तीन कर्णिका......विचित्र ऐसी जगती विधिसे शोभती करना । (२६) सिंह द्वारकी दोनों बाजु नौ...... ताल (मंडपकी) आगे गहरा तेरह भाग और चालीश भाग चौड़ा......करना । सिंह द्वारकी पीछे मुख पर पश्चिममें और चारों स्थानोंमें शुभ......(ऐसे महाधर करना!) फिरते चौरासी जिनायनकी देवकुलिकाओं सिद्ध करना । सिंह द्वारका विचार कर शुभ ऐसा मध्यके ब्रह्मस्थानके बारेमें सुनो। प्रासादके नौ कोठेको एक भाग प्रदक्षिणाका रखना । वैसे पाँच वर्ण (?) श्रीमघृष (चौमुख!) होवे उन पाँचको मेघनाद मंडपों करना । उनके नीचे सिंह द्वार पर नालि (मंडप) उसके पर पंच या नौ भद्रका आगे ( मंडप)...२६-२७-२८-२९-३०. ब्रह्मस्थाने त्रय: पक्षे निर्गमं च विशेषतः । त्रयो मंडपान मध्ये पण द्वयं प्रदापयेत् ॥३१॥ मंडपै नालिकैर्वक्ष्ये पणमेकेन बासतेः । निर्गमो वेदिका बाह्ये अब च योणि वेदिका ॥३२॥ तेषां प्रस्तार भावेन सालंकार संयुता । ... ... ... ... ...नाम मानतुङ्गना ।। ३३॥ ભાવાર્થ–બ્રહ્મા સ્થાન (મધ્ય મુખ!) ના ત્રણે બાજુ નિકાળે વિશેષ કરીને રાખો. ત્રણે તરફના મંડપના મધ્યમાં બબ્બે પદ ભાગનું (અંતર!) રાખવું. નાલિમંડપ ઉપર કહુ છું એક પદ બહાર બાજુમાં અને ચાર પદ આગળ નીકળતા નીચે રાખવા. બાકી અંદર જિનાયતનને ફરતે પ્રસ્તાર ચેકીયાળા કરવાથી તે સર્વ અલંકારયુક્ત એ માનતુળ નામને ચતુર્મુખ પ્રાસાદ myal. 3१-३२-33 ब्रह्मस्थान (मध्य चौमुख) के तीनों बाजु निकाला विशेषकर रखना। तीनों तरफके मंडपके मध्यमें दो दो पद भागका (अंतर) रखना । नालि मंडप पर कहता हूँ। एक पद बाहर बाजुमें और चार पद आगे नीकलतेके नीचे रखना। बाकी अंदर जिनायतनके चारों और प्रस्तार-चौकीयाले करनेसे उसे सर्व अलंकारसे युक्त ऐसा मानतुङ्ग नामका चतुर्मुख प्रासाद जानना । ३१-३२-३३. सौभाग्यानि प्रवक्ष्यामि तथा किरणावली शुभा। प्रासादं ब्रह्मसूत्रेश शरभ्रं नव कोष्टके ॥३६॥ ...
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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