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________________ २७६ क्षीरार्णव अ. ११९ क्रमांक अ. २५ श्रृङ्ग मिश्रधा रुचकं (भद्रे) मिश्रके तिलकोत्तम् ।।३६।। कर्णे तिलक प्रदातव्या स्थित्वरुचकोत्तमा । श्रृङ्गमध्ये गतं श्रृङ्ग तन्मध्ये शिखरं भवेत् ।। ३७॥ (इति) मिश्रक सर्वतोभद्रं कर्णे तिलक द्वितीयकम् । . .. लावाय-श्रृंग मिश्र५-३५४ भने भद्र मिश्रने तिम........४६-३माये પર શિપીઓ પિતાની બુદ્ધિથી અંડક ચઢાવી શકે પરંતુ પાછળના ૬ થી ૧૦ સુધીના પાંચ શિખરના અગ ચડાવવા એ ઘણું મુશ્કેલ છે. અન્ય ગ્રંથોની સાથે સરખાવતાં બીજા કેઈ ગ્રંથમાં આને મળતા પાઠો કે નામ પણ નથી. સંશોધન પાછળ યથામતિશ્રમ લીધે છે, જો કે અમુક પાઠમાં શકય હોય ત્યાં ક્રમને અબાધિત રાખીને સંશોધન કરી મૃગના ક્રમ મેળવવા પ્રયાસ यो छ. वैराज्य कुलके केशरादि पच्चीस प्रासादोंका पाठमें दिया हुआ क्रम और उनकी क्रमसंख्या-(उपर देखिये।) ___ यहाँ दिये हुए पच्चीस प्रासादोंके शिखरों-अठाईतल विभक्तिके दश भेद और दशाईतल विभक्तिके पंद्रह भेद मिलकर कुल पच्चीश शिखरों कहे हुए हैं। वे दोनों विभक्तिके प्रासादके फूलवाले नामों दशाई अठाईमें एक ही आते हैं। उसके शृङ्गकी विधिके १ केशरादि ज्यादासे ज्यादा पाँचवाँ अमृतोद्भव तक शृङ्गो अट्ठाई तल पर शिल्पीओं स्वबुद्धिसे अंडक चढ़ा सके, परंतु पीछेके ६ से १० तकके पाँच शिखरोंके गृङ्ग चढ़ाना यह बहुत मुश्किल है । अन्य ग्रंथों के साथ मिलाते दूसरे किसी ग्रॅथमें इससे मिलते जुलते पाठी या नाम भी नहीं है । संशोधन के पीछे यथामति श्रम लिया है। जो कि अमुक पाठोंमें शक्य हो वहाँ क्रमको अबाधित रखकर संशोधन कर Zङ्गोका क्रम मिलाने का प्रयास किया है। (૫) અહીં શ્લોક ૩૬ થી મિશ્રક રૂચકાદિ જાતના પ્રાસાદના હોય તેમ જણાય છે. પરંતુ અપરાજિત Bur Maya सूत्र ११८ ते पाह। आधेरछे परंतु माडी भां | तालमा ३०५१५३ घणी अशुदिई चमेसतु नथी. (५) यहाँ श्लोको ३६ से मिश्रक सूचकादि जगतिके प्रासादके हो ऐसा दिखता है। परंतु अपराजित सूत्र १६८ में वे पाठो दिये हैं, लेकिन यहाँ पाठोंमें बहुत अशुद्धि होनेसे मिलता जुलता नहीं है। Ma भ्रभयुक्त वैराज्यकुल वज्ञक प्रासाद (२५) तलभाग १० श्रृंग १६१ Ind
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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