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________________ अथ मंडपाधिकार इस तरह शामरण पच्चीस चढ़ाना-शामरणके प्रत्येक थरमें नीचे छाजली कूट--उद्गम और उसके पर घण्टीका चढ़ाना। इस करह शामरणका प्रत्येक थरका क्रम जानना । इस तरह करते जिस तरह शिखर को उरुशृंग चढ़ता है इस तरह शाभरण के गर्भमें उरुघण्टा चढे उसके पर सिंह बैठता है । मध्य की सर्वोपरि को मूल घण्टा कहता हैं और उसके पर बड़ा कलश स्थापित होता है। यद्यपि प्रत्येक घण्टा पर कलश-अंडा रखा गया है । ७६-७७-७८. इति श्री विश्वकर्मा कृतायां क्षीरार्णवे नारदपृच्छायां मंडपाधिकारे शताने षड्दशमोऽध्याय ॥ ११६ ॥ (क्रमांक अ० १८) ઈતિ શ્રી વિશ્વકમાં વિરચિય ક્ષીર શ્રી નારદજીએ પૂલ મંડપાંધિકારના શિલ્પ વિશારદ સ્થપતિ શ્રી ઓઘડભાઈ સોમપુરાએ રચેલી સુપ્રભા નામની ભાષા ટીકા સાથેનો मेसो सभी अध्याय (११९) (भा अ० १८) इति श्री विश्वकर्मा विरचित क्षीरार्णवमें श्री नारदजीके पूछे हुए मंडपाधिकारके शिल्प विशारद स्थपति श्री प्रभाशंकर ओघडभाई सोमपुराकी रचि हुई सुप्रभा नाम्नी भाषाटीका का एकसौ सोलह, अध्याय । ११६) (क्रमांक अ० १८) Om. HEAL
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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