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________________ अथ मंडपाधिकार આ રીતે શામરણ-પચીશ ચડાવવી. શામરણના પ્રત્યેક ઘરમાં નીચે છાજલી ફૂટ ઉડમ અને તે પર ઘંટીકા ચડાવવાં આમ શામરણના પ્રત્યેક થેરેને કેમ જાણવો આ રીતે કરતાં જેમ શિખરને ઉરુ ફૂગ ચડે છે તેમ શામરણને ગર્ભે ઉઘંટા ચડે તે પર સિંહ બેસે છે. મધ્યની સર્વોપરિને મૂળ ઘંટા કહે છે. અને તેના પર માટે કળશ સ્થાપન થાય. જોકે પ્રત્યેક ઘંટા પર કળશ. छ। भूपां. ७६-७७-७८. चोरस क्षेत्रके आठ विभाग करना । उसमें गर्भ में भध्य में दो माग की रथिका (भद्र) और तीन तीन भाग की रेखा करना | इस सरफ चारों बाजु विभाग की व्यवस्था करना । रेखापर दो भागकी चौडी घंटिका कर उसके नीचे कोने में कूट करना । सर्वोपरि मूल घण्टा तीन भागकी कूटके साथ चार भाग की चौडी करसे उसके ऊपर एक भागका कलश करना । इस तरह तलविभाग कहे। अब उदय चार भागका करने के लिये कहता हूँ। प्रत्येक घण्टा के नीचे छाजली उसके ऊपर कूट करना । कूटके थरमें घंटिका के गर्भ में उदय डेढिया करना । उस कूटके ऊपर घंटिका करना । __ संवरणाको शिल्पीओंकी भाषामें शामरण कहते हैं। यहाँ मंडप पर शामरण करने के लिये कहा है। परंतु गर्भगृह पर भी जहाँ शिखर करनेकी दुष्करता हो अगर अल्प द्रव्य व्ययके कारण गर्भगृह पर शामरण करते हैं। आबूके महामूले मंदिरों पर शामरण ओरिसाकलिंग और खजुराहोमें शिखर और शामरण दोनों देखनेमें आते हैं। शामरण का दूसरा प्रकार त्रिषट है । और कलिंगादि देशोंके पुराने कामोंमें देखने में आते हैं। अपने सौराष्ट्र, गुजरात और कच्छ, राजस्थान के पुराने कामोंमें त्रिषट देखनेको मिलता है। एक पर दूसरी छाजली पीछे मारकर संकोचकर उपर आमलसाराघटा कर कलश चढ़ाते हैं। त्रिसटाका नागरादि शिल्पमें शास्त्रोक्त पाठ अभी देखने में आया नहीं है। (१) शिखर (२) शामरण (३) त्रिषटा इस तरह तीन सर्वोच्च शिल्प होता है । त्रिषटा थोड़े फेरफारके साथ शामरणका संक्षिप्त स्वरूप है। संवरणा को शिल्पमें नारी जातिसे संबोधन किया जाता है। शामरण विस्तार से अर्ध ऊँची कही गई है। परंतु शिल्पीओं अपनी कलाका प्रदर्शन करनेके लिये प्रत्येक थर पर जांगी चढ़कर ऊँची करते हैं। जैसलमेरमें वैसा है। वर्तमानकालमें शामरण चढ़ानेकी जो प्रथा शिल्पियोंमें है, वह करीब दो सौ सालसे चली आयी है। छाजली कूट घंटा प्रत्येक थरमें करनेका शास्त्रकारका विधान है। और वर्तमानकाल की शामरणमें अकेली घंटा लामसाके घर पर थर चढ़ाते हैं। यद्यपि यह रीत अशास्त्रीय नहीं कही जाती। जब गर्भगृह पर संवरणा करनेकी होती है तब उपर मूल घंटाके स्थान पर आमल सारा ही करनेका फर्ज पड़ता है, क्योंकि ध्वजा दंड खडा करने का कारण मूल घंटेमें बनता नहीं है। परंतु आमलसारेमें साल रखकर ध्वजा दंड स्थापन किया जा सकता हैं।
SR No.008421
Book TitleKshirarnava
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhashankar Oghadbhai Sompura
PublisherBalwantrai Sompura
Publication Year
Total Pages416
LanguageGujarati, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Art, & Culture
File Size13 MB
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